विष्णु भगवान ने महाभारत का युद्ध क्यों करवाया?
जब भी कभी हिन्दू धर्म के महान पौराणिक ग्रंथों की बात होती है तो “महाभारत” का नाम उनमें ज़रूर आता है और भविष्य में भी आता रहेगा।
जैसा की हम सभी जानते हैं भगवन श्री कृष्ण महाभारत के युद्ध के केंद्र बिंदु थे। भगवन श्री कृष्ण ने महाभारत में गीता उपदेश के द्वारा मानव जगत को बेहद ही गुह्य जानकारी प्रदान की थी। भगवन श्री कृष्ण स्वयं भगवन विष्णु का अवतार हैं। भगवन विष्णु को सम्पूर्ण जगत का संरक्षक भी कहा जाता है।
गीता में बताई गयी बातों का अनुसरण जो व्यक्ति अपने जीवन में कर लेता है उसका सम्पूर्ण जीवन परिवर्तित हो जाता है। यह महज बोलने वाली बात नहीं है। आज के दौर में विदेशों के कई प्रमुख विश्वविद्यालयों में गीता का अध्ध्यन किया जाता है। खैर हम अपने प्रश्न पर आते हैं कि “विष्णु भगवन ने महाभारत का युद्ध क्यों करवाया?“
महाभारत का युद्ध भी परमात्मा की उन अनेक और अनगिनत लीलाओं में से एक है जिसे ईश्वर ने धरती पर धर्म की स्थापना के लिए रचा था। आगे इस लेख में हम सम्पूर्णता से जानेंगे कि “विष्णु भगवन ने महाभारत का युद्ध क्यों करवाया?” जानने के लिए इस लेख में हमारे साथ बने रहिये। लेकिन उस से पहले यह जान लेते हैं कि महाभारत असल में क्या था?
महाभारत क्या है?
“महाभारत” को हिन्दू धर्म के दो महत्वपूर्ण पुराणों में से एक माना जाता है। एक “रामायण” है और दूसरा “महाभारत”। महाभारत दो चचेरे भाईयों के बिच कुरुक्षेत्र के मैदान में हुए विध्वंसकारी युद्ध के संघर्ष की कहानी है। यह दो समूह “कौरव” और “पांडव” के नाम से जाने जाते हैं। संघर्ष भी था तो महज ज़मीन के लिए।
वही ज़मीन जो मरने के बाद किसी के काम की नहीं। मगर कौरवों ने कपट और छल से अपने चचेरे भाईयों कि ज़मीन हड़प ली थी और उन्हें वनवास के लिए भेज दिया था। यही नहीं कौरवों ने पांडवों कि कुलवधू का वस्त्र चीरहरण करके भरी सभा में अपमान भी किया था।
भगवान् श्री कृष्ण का कहना है कभी किसी पर अत्याचार या बल का गलत उपयोग मत करो और अगर कोई ऐसा कर रहा है तो उस व्यक्ति का अत्याचार मत सहो।
यही कौरवों का अपने चचेरे भाइयों पर अत्याचार “महाभारत” के विध्वंसकारी युद्ध का सूत्रधार बना जिसने कुछ ही समय में कौरवों के वंश का विनाश कर दिया।
क्या भगवन विष्णु ने सच में “महाभारत” का युद्ध करवाया?
परमात्मा की लीला अपरम पार होती है। इसे परमात्मा के अलावा कोई और समझ पाने में विफल है। ईश्वर की मर्ज़ी के बिना तो इस ब्रह्मांड जगत में एक पत्ता तक नहीं हिलता। यह परमात्मा की कृपा ही है जो आप और में अभी इस समय श्वास ले पा रहे हैं। परमात्मा की कृपा से ही सूर्य देव इस धरती पर अपनी जीवन प्रदायिनी किरणें प्रकाशित कर रहे हैं। जिन किरणों से पृथ्वी के हर एक जीव का संचालन होता है।
गीता में भगवन श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है –
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥
आप सभी ने अवश्य ही इस महान श्लोक को सुना होगा। यह गीता में बताया गया एक महत्वपूर्ण श्लोक है।
इसका अर्थ है –
“जब जब संसार में धर्म की हानि होती है, में तब तब इस धरती पर अवतार लेता हूँ। जब अत्याचार और अधर्म अपने चरम पर पहुँच जाता है मैं तब तब धर्मियों की रक्षा के लिए और अधर्मियों के विनाश के लिए जनम लेता हूँ। इस प्रकार मैं धर्म की स्थापना के लिए अवतार लेता हूँ।”
“धर्म” का मतलब यहाँ किसी धर्म विशेष से नहीं है। धर्म का मतलब है ईश्वर के बनाये हुए सिद्धांत जिनसे प्रकृति निरंतर चली रहती है। जब जब इन्हे ठेस पहुंचेगी ईश्वर किसी न किसी अवतार में अवतरित होकर के इन धर्म के सिद्धांतो की पुनः रक्षा एवं स्थापना करेंगे।

तो इस श्लोक से यह बात साफ़ हो जाती है कि उस काल में कौरवों के अत्याचार और उनके द्वारा अधर्म इतने बढ़ चुके थे कि भगवन विष्णु को श्री कृष्ण के रूप में धर्म कि पुनः स्थापना के लिए अवतार ले कर आना पड़ा।
यह सब ईश्वर की एक लीला थी और जैसे की मैंने कहा कि ईश्वर की आज्ञा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता उसी प्रकार यह महाभारत जो हुआ यह ईश्वर द्वारा पहले से ही रचा हुआ था। कौरव और पांडव तो महज कठपुतलियां थी और उनके जीवन की सांसें ईश्वर के अधीन पहले से ही थी।
भगवान श्री कृष्ण कि “महाभारत” की प्रमुख पात्रों से युद्ध न करने कि विनती
यह बात तो हम जान चुके हैं कि “महाभारत” का युद्ध ईश्वर की धर्म कि स्थापना के लिए रची गयी एक लीला ही थी इस के बावजूद भी श्री कृष्ण ने “महाभारत” के युद्ध को रोकने के लिए कौरवों की तरफ खड़े कई प्रमुख पात्रों से विनती की। श्री कृष्ण पहले से ही जानते थे कि इस युद्ध को टाला नहीं जा सकता क्यूंकि यह युद्ध ईश्वर कि लीला का एक हिस्सा मात्र है लेकिन फिर भी वह अपना दायित्व निभाते हैं।
यह वे इस लिए करते हैं ताकि भविष्य में संसार के लोगों को यह सन्देश दे पाएं कि युद्ध से पहले उसको टालने की कोशिश ज़रूर करें। क्यूंकि किसी भी व्यक्ति को समझाया जा सकता है अगर उस व्यक्ति की समझने की इच्छा हो तो। इस तरह हम कोई भी विध्वंसकारी युद्ध रोक सकते हैं।
आईये जानते हैं भगवान श्री कृष्ण ने कौरवों की तरफ से युद्ध में लड़ने वाले प्रमुख पात्रों से जब युद्ध में न लड़ने कि विनती की तो उन्होंने क्या चुना।
कर्ण
कर्ण को युद्ध से पहले उसे युद्ध में भाग लेने से रोकने के लिए श्री कृष्ण ने वास्तविकता बताई। लेकिन कर्ण ने अपनी वफादारी को चुना। कर्ण को अपने मित्र दुर्योधन के अत्याचार नहीं दिखे और उसने मित्रता में वफादारी को एक स्त्री पर हुए अत्याचार से बड़ा धर्म माना। इस प्रकार कर्ण से सही धर्म का मोल करने में चूक हो गयी।
भीष्म पितामह
युद्ध रोकने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ने के लिए पीतामह को सार्थक कारण दिया। फिर भी पीतामा ने प्रतिज्ञा को चुना। उन्होंने हस्तिनापुर के सम्मान और संरक्षण कि प्रतिज्ञा के धर्म को एक स्त्री पर हुए अपमान और भाईयों द्वारा किये गए छल से बड़ा धर्म माना। इसी धर्म के सिद्धांत की गलत परिभाषा के जीर्णोद्धार के लिए तो श्री कृष्ण ने अवतार लिया था।
द्रोणाचार्य
भगवान श्री कृष्ण द्रोणाचार्य से मिले और उन्हें न्याय का समर्थन करने की सलाह दी और अधर्म के प्रति पुत्र (अश्वथामा) की इच्छा को मूर्खतापूर्ण बताया। लेकिन फिर भी, द्रोणाचार्य ने पुत्र मोह में अनुचित पुत्र पक्ष को चुना। द्रोणाचार्य जैसे महान गुरु की आँखों पर पुत्र मोह कि इतनी जटिल पट्टी ने उन्हें अँधा कर दिया था जिस कारण उन्हें सही धर्म और अधर्म में कोई अंतर नहीं दिखा।
मोह मनुष्य के पतन का कारण बनता है। यही बात श्री कृष्ण ने आगे चल कर गीता के भव्य महाज्ञान में उपदेशित की।
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दुर्योधन
कौरवों में सर्वश्रेष्ठ भाई दुर्योधन ही था। यह उसी का अधर्म था जिस के कारण “महाभारत” का युद्ध हो रहा था। युद्ध रोकने के लिए दुर्योधन को भगवन श्री कृष्ण ने सम्पूर्ण इंद्रप्रस्थ राज्य की पेशकश की और पांडवों के लिए केवल पांच गांवों की मांग की। लेकिन कपट की पट्टी आँखों पर बंधी होने के कारण दुर्योधन ने युद्ध को चुना।
धृतराष्ट्र
धृतराष्ट्र दुर्योधन की पिता थे। पुत्र के अधर्म कृत्यों के बारे में बता कर श्री कृष्ण ने धृतराष्ट्र को समझाने के लिए हर संभव कोशिश की। लेकिन धृतराष्ट्र की वैसे भी कौन सुनता। वह दुर्योधन को समझने में असफल रहे।
और इस तरह अंत में “महाभारत” का युद्ध होकर ही रहा।
विष्णु भगवान ने महाभारत का युद्ध क्यों करवाया?
हमने विस्तार से जाना की “महाभारत” का युद्ध क्यों हुआ? इसका मुख्य कारण उस काल में अपने चरम सीमा पर पहुंचा हुआ अधर्म और अत्याचार था। भगवन विष्णु ने धर्म कि पुनः स्थापना के लिए यह लीला रची ताकि आने वाली पीढ़ी तक गीता और धर्म का ज्ञान पहुँचाया जा सके।
भगवन ने गीता उपदेश में काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार को मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु बताया है। यही पांच अवगुण मनुष्य द्वारा अधर्म का कारण बनते हैं। हमें अपने जीवन को सरल रूप में जीना चाइये और हमें धर्म के तराजू पर अपने कृत्यों को तोलना आना चाइये।
मेरा भरोसा है कि आपके मन में उठा यह महत्वपूर्ण प्रश्न कि “विष्णु भगवान ने महाभारत का युद्ध क्यों करवाया”? का उत्तर आपको मिल गया होगा। आशा करता हूँ आप जीवन में स्वस्थ रहें और सदैव धर्म के रास्ते पर चलें।
जय श्री कृष्ण!
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