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विजया एकादशी व्रत कथा (Vijaya Ekadashi Vrat Katha In Hindi)

विजया एकादशी व्रत कथा (Vijaya Ekadashi Vrat Katha In Hindi)

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विजया एकादशी व्रत कथा (Vijaya Ekadashi Vrat Katha In Hindi)

विजया एकादशी (Vijaya Ekadashi) हिंदू धर्म में एक पवित्र दिन माना जाता है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार यह दिन फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन होता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह दिन फरवरी या मार्च के महीने में आता है।

विजय एकादशी के नाम से ही पता चलता है कि यह दिन हार को जीत में बदलने के लिए मनाया जाता है। इस दिन के व्रत के बारे में पद्म पुराण और स्कन्द पुराण में लेख भी वर्णित हैं।

अगर आप अपने जीवन में भयंकर शत्रुओं से घिरे हुए हैं और अपनी हार ही निश्चित पा रहे हैं तो विजया एकादशी व्रत (Vijaya Ekadashi Vrat) करना आपके लिए उपयोगी होगा।

विजया एकादशी व्रत आपको अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने कि क्षमता रखता है। प्राचीन काल में राजा इस व्रत का पालन कर के इसका उचित प्रभाव प्राप्त करते थे।

इस प्रकार वे लोग अपनी निश्चित हार को जीत में बदलते थे। अगर आप भी अपने जीवन में कठिनाईओं का सामना कर रहे हैं तो यह व्रत ज़रूर करें ताकि आप अपनी कठिनाईओं पर विजय प्राप्त कर सकें।

हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग इस दिन उपवास रखते हैं और अपने शत्रुओं तथा कठिनाईओं पर विजय प्राप्त करने के लिए भगवान श्री विष्णु जी की पूजा करते हैं। यह दिन विशेष रूप से विष्णु जी के भक्त वैष्णव संप्रदाय के लोगों द्वारा मनाया जाता है।

अगर आप वर्ष की सभी एकादशी व्रतों की विधि तथा व्रत कथा पढ़ना चाहते हैं तो निचे दिए गए लिंक पर क्लिक कीजिये। हमने सभी एकादशी व्रत विधि तथा कथाओं के ऊपर लेख विस्तार में लिखे हुए हैं।

वर्ष की सभी एकादशी व्रत विधियां एवं कथाएं यहाँ पढ़ें

इस लेख में हम विजया एकादशी व्रत (Vijaya Ekadashi Vrat), विजया एकादशी व्रत विधि (Vijaya Ekadashi Vrat Vidhi) और विजया एकादशी व्रत कथा (Vijaya Ekadashi Vrat Katha) के बारे में जानेंगे।

विजया एकादशी व्रत और विजया एकादशी व्रत कथा कब करनी चाहिए? (When to do Vijaya Ekadashi Vrat and Vijaya Ekadashi Vrat Katha?)

विजया एकादशी व्रत (Vijaya Ekadashi Vrat) और विजया एकादशी व्रत कथा (Vijaya Ekadashi Vrat Katha) ईश्वर से सुख प्राप्ति, अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्ति और आध्यात्मिक सफाई के बारे में है।

यह दिन भगवान विष्णु जी को समर्पित है। हिंदू मान्यता के अनुसार एक चंद्र चरण के दो अलग-अलग चरण होते हैं – कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। प्रत्येक चरण (पक्ष) 14 दिनों का होता है। इन दोनों पक्षों को ही हिन्दू कैलेंडर माह के पक्ष भी कहा जाता है।

दोनों पक्षों के ग्यारहवें दिन को एकादशी कहा जाता है। इसलिए एक माह में दो एकादशी के दिन आते हैं। इस दिन रखे जाने वाले व्रत या कर्मकांड को एकादशी व्रत कहा जाता है और दुनिया भर में लाखों हिंदुओं द्वारा मनाया जाता है।

फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी कहा जाता है। इस दिन ही विजया एकादशी व्रत (Vijaya Ekadashi Vrat) तथा विजया एकादशी व्रत कथा (Vijaya Ekadashi Vrat Katha) रखनी चाहिए।

विजया एकादशी व्रत एक दिन पहले सूर्यास्त से शुरू होकर एकादशी के अगले दिन सूर्योदय के बाद तक रखा जाता है।

विजया एकादशी व्रत कथा विधि (Vijaya Ekadashi Vrat Katha Vidhi In Hindi)

विजया एकादशी व्रत (Vijaya Ekadashi Vrat) और विजया एकादशी व्रत कथा (Vijaya Ekadashi Vrat Katha) की पूजा विधि इस प्रकार है।

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
  • घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
  • भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें।
  • भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी अर्पित करें।
  • अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।
  • व्रत कथा का पाठ करें। (व्रत कथा इस लेख में निचे दी गयी है। कृपया कर के व्रत कथा वहां से पढ़ें।)
  • भगवान की आरती करें। (इस लेख के अंत में एकादशी आरती के लेख का लिंक दिया गया है। उस पर क्लिक कर के आप एकादशी आरती पढ़ सकते हैं।)
  • भगवान को भोग लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं।
  • इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें।
  • इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।
  • अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत खोलें और सात्विक भोजन करें। बहुत से लोग व्रत के दौरान फलाहार ग्रहण करते हैं और कुछ लोग कुछ भी खाना ग्रहण नहीं करते। यहाँ तक की पानी भी ग्रहण नहीं करते। परन्तु आप व्रत के दौरान फलाहार ग्रहण कर सकते हैं।
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पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Pausha Putrada Ekadashi Vrat Katha In Hindi)

विजया एकादशी व्रत और विजया एकादशी व्रत कथा के लाभ (Benefits of Vijaya Ekadashi Vrat and Vijaya Ekadashi Vrat Katha)

विजया एकादशी व्रत (Vijaya Ekadashi Vrat) और विजया एकादशी व्रत कथा (Vijaya Ekadashi Vrat Katha) का लाभ उन लोगों के लिए है जो भगवान विष्णु की आस्था और पूजा करते हैं।

इसे हिंदू धर्म में सबसे फलदायी व्रतों में से एक माना जाता है। एकादशी व्रत के लाभ आपको शांति, सद्भाव और समृद्धि ला सकते हैं। इस पवित्र हिंदू अनुष्ठान के भक्त, मन की शांति के साथ शत्रुओं तथा कठिनाईओं पर विजय और समृद्धि प्राप्त करते हैं।

विजया एकादशी व्रत (Vijaya Ekadashi Vrat) और विजया एकादशी व्रत कथा (Vijaya Ekadashi Vrat Katha) को शत्रुओं तथा कठिनाईओं पर विजय प्राप्ति के लिए अति योग्य माना जाता है।

जो मनुष्य इस महत्त्वपूर्ण विजया एकादशी व्रत कथा (Vijaya Ekadashi Vrat Katha) को पढ़ता या सुनता है उसे अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

विजया एकादशी व्रत कथा (Vijaya Ekadashi Vrat Katha In Hindi)

यह त्रेतायुग के समय की बात है जब श्री रामचन्द्र जी अपनी अर्धांगिनी सीता को ढूंढ रहे थे। इसी वजह से ढूंढ़ते ढूंढ़ते श्री रामचंद्र जी समुद्र तट पर पहुंचे।

भगवान श्री रामचंद्र जी को उनके परम भक्त जटायु वहां मिले। जटायु समुद्र तट पर बेहोशी की हालत में मिले थे। दरअसल, जटायु सीता माता को रावण से बचाते-बचाते ज़ख़्मी होकर वहां पड़े हुए थे।

जटायु ने श्री राम जी को बताया कि लंका नगरी का राजा रावण सीता माता को सागर पार ले गया है। उन्होंने आगे बताया कि माता सीता इस समय आशोक वाटिका में हैं।

जटायु द्वारा सीता माता का पता प्राप्त कर के श्री रामचन्द्र जी अपनी वानर सेना के साथ लंका पर आक्रमण की तैयारी करने लगे। परंतु सागर के जल जीवों से भरे दुर्गम मार्ग से होकर लंका पहुंचना बहुत ही मुश्किल था।

जब श्री रामचंद्र जी को समुद्र को लांघने का कोई मार्ग नहीं मिला तब उन्होंने लक्ष्मण जी से पूछा कि इस समुद्र को पार करने का कोई उपाय मुझे सूझ नहीं रहा है अगर तुम्हारे पास समुद्र को पार करने का कोई उपाय है तो मुझे बताओ।

श्री रामचन्द्र जी की बात सुनकर लक्ष्मण बोले प्रभु आप तो महान हैं और न ही आपसे कोई भी बात छिपी हुई है। आप अपने आप ही हर कार्य को करने में समर्थवान हैं परन्तु फिर भी अगर आपने आज्ञा की है तो मैं कहूंगा कि यहां से आधा योजन दूर अति ज्ञानी वकदाल्भ्य मुनि का आश्रम है। हमें वहीं जाकर उनसे ही इसका हल पूछना चाहिए।

भगवान श्रीराम जी लक्ष्मण जी के साथ वकदाल्भ्य मुनि के यहाँ पहुंचे और उन्हें प्रणाम करके अपना प्रश्न पूछा – “हे मुनिवर! कृपा कर के समुद्र मार्ग को पार करने का समाधान बताईए।”

मुनिवर ने कहा – “हे श्री रामचंद्र! आप अपनी सेना के साथ फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन व्रत रखें। इस एकादशी के व्रत के प्रभाव से आप निश्चित ही समुद्र को लांघ कर रावण को पराजित कर पाएंगे।”

साथ में मुनिवर ने कहा कि व्रत के बाद आप समुद्र पर पुल के निर्माण का कार्य आरम्भ कर के लंका पर अपनी सेना के साथ चढ़ाई करो।

श्री रामचन्द्र जी ने तब अपने साथियों और सेना के साथ फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष का दिन आने पर मुनिवर के बताये विधान के अनुसार एकादशी का व्रत रखा और समुद्र पर पुल का निर्माण कार्य शुरू किया।

बाद में चल कर श्री राम और रावण का युद्ध हुआ। इस युद्ध में रावण मारा गया और श्री रामचंद्र जी की विजय हुई।

इस कथा से हमें विजया एकादशी व्रत (Vijaya Ekadashi Vrat) और विजया एकादशी व्रत कथा (Vijaya Ekadashi Vrat Katha) का महत्त्व पता चलता है।

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