Sri Vyankatesh Stotra (श्री व्यंकटेश स्तोत्र) Lyrics In Marathi


Sri Vyankatesh Stotra (श्री व्यंकटेश स्तोत्र) Lyrics In Marathi

Sri Vyankatesh Stotra (श्री व्यंकटेश स्तोत्र) मराठी भाषा में है। इसे देवीदास ने लिखा है। यह बहुत ही शुभ स्तोत्र है और बहुत से लोग प्रतिदिन इस स्तोत्र का पाठ करते हैं। Sri Vyankatesh Stotra (श्री व्यंकटेश स्तोत्र) निचे मराठी भाषा में दिया गया है। इसको पढ़ने से पहले Sri Vyankatesh Stotra (श्री व्यंकटेश स्तोत्र) से होने वाले लाभ के बारे में जानें।

Benefits of Sri Vyankatesh Stotra (श्री व्यंकटेश स्तोत्र के लाभ)

विश्वास और एकाग्रता के साथ Sri Vyankatesh Stotra (श्री व्यंकटेश स्तोत्र) का पाठ करने वाले बहुत से लोग लाभान्वित होते हैं। वे श्री व्यंकटेश से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और वे समृद्ध बनते हैं। उनके जीवन से सभी दुख और कठिनाइयां दूर हो जाती हैं।

जिनकी कोई संतान नहीं होती, उन्हें संतान प्राप्त होती है। जो व्यक्ति Sri Vyankatesh Stotra (श्री व्यंकटेश स्तोत्र) का पाठ करता है उसकी हर मनोकामना भगवान व्यंकटेश से पूरी होती है। देवीदास कहते हैं कि जो कोई भी Sri Vyankatesh Stotra (श्री व्यंकटेश स्तोत्र) को भक्ति, विश्वास के साथ प्रतिदिन पढ़ता है; भगवान व्यंकटेश ऐसे व्यक्ति की देखभाल करते हैं।

Sri Vyankatesh Stotra (श्री व्यंकटेश स्तोत्र) Lyrics In Marathi Sri Venkatesha Stotra In Hindi (श्री वेङ्कटेश स्तोत्र हिंदी में)

हम प्रार्थना करते हैं कि भगवन व्यंकटेश आपकी हर एक मनोकामना पूर्ण करे और आप नित्य दिन Sri Vyankatesh Stotra (श्री व्यंकटेश स्तोत्र) का पाठ करें।

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Sri Vyankatesh Stotra (श्री व्यंकटेश स्तोत्र)

Sri Vyankatesh Stotra (श्री व्यंकटेश स्तोत्र)

श्री गणेशाय नम: | श्री व्यंकटशाय नम: ||

ॐ नमो जी हेरंबा | सकळादि तू प्रारंभा |
आठवूनी तुझी स्वरूपशोभा | वंदन भावे करीतसे || १ ||

नमन माझे हंसवाहिनी | वाग्वरदे विलासिनी |
ग्रंथ वदावया निरुपणी | भावार्थखाणी जयामाजी || २ ||

नमन माझे गुरुवर्या | प्रकाशरूपा तू स्वामिया |
स्फूर्ति द्यावी ग्रंथ वदावया | जेणे श्रोतया सुख वाटे || ३ ||

नमन माझे संतसज्जना | आणि योगिया मुनिजना |
सकळ श्रोतया साधुजना | नमन माझे साष्टांगी || ४ ||

ग्रंथ ऐका प्रार्थनाशतक | महादोषांसी दाहक |
तोषुनिया वैकुंठनायक | मनोरथ पूर्ण करील || ५ ||

जयजयाजी व्यंकटरमणा | दयासागरा परिपूर्णा |
परंज्योती प्रकाशगहना | करितो प्रार्थना श्रवण कीजे || ६ ||

जननीपरी त्वां पाळिले | पितयापरी त्वां सांभाळिले |
सकळ संकटांपासुनि रक्षिले | पूर्ण दिधले प्रेमसुख || ७ ||

हे अलोलिक जरी मानावे | तरी जग हे सृजिले आघवे |
जनक जननीपण स्वभावें | सहज आले अंगासी || ८ ||

दीननाथा प्रेमासाठी | भक्त रक्षिले संकटी |
प्रेम दिधले अपूर्व गोष्टी | भजनासाठी भक्तांच्या || ९ ||

आता परिसावी विज्ञापना | कृपाळुवा लक्ष्मीरमणा |
मज घालोनि गर्भाधाना | अलोलिक रचना दाखविली || १० ||

तुज न जाणता झालो कष्टी | आता दृढ तुझे पायी घातली मिठी |
कृपाळुवा जगजेठी | अपराध पोटी घाली माझे || ११ ||

माझिया अपराधांच्या राशी | भेदोनी गेल्या गगनासी |
दयावंता हृषीकेशी | आपुल्या ब्रीदासी सत्य करी || १२ ||

पुत्राचे सहस्र अपराध | माता काय मानी तयाचा खेद |
तेवी तू कृपाळू गोविंद | मायबाप मजलागी || १३ ||

उडदांमाजी काळेगोरे | काय निवडावे निवडणारे |
कुचलिया वृक्षांची फळे | मधुर कोठोनी असतील || १४ ||

अराटीलागी मृदुता | कोठोनी असेल कृपावंता |
पाषाणासी गुल्मलता | कैशियापरी फुटतील || १५ ||

आपादमस्तकावरी अन्यायी | परी तुझे पदरी पडिलो पाही |
आता रक्षण नाना उपायी | करणे तुज उचित || १६ ||

समर्थांचे घरीचे श्र्वान | त्यासी सर्वही देती मान |
तैसा तुझा म्हणवितो दीन | हा अपमान कवणाचा || १७ ||

लक्ष्मी तुझे पायांतळी | आम्ही भिक्षेसी घालोनी झोळी |
येणे तुझी ब्रीदावळी | कैसी राहील गोविंदा || १८ ||

कुबेर तुझा भांडारी | आम्हां फिरविसी दारोदारी |
यात पुरुषार्थ मुरारी | काय तुजला पै आला || १९ ||

द्रौपदीसी वस्त्रे अनंता | देत होतासी भाग्यवंता |
आम्हांलागी कृपणता | कोठोनी आणिली गोविंदा || २० ||

मावेची करुनी द्रौपदी सती | अन्ने पुरविली मध्यराती |
ऋषीश्र्वरांच्या बैसल्या पंक्ती | तृप्त केल्या क्षणमात्रे || २१ ||

अन्नासाठी दाही दिशा | आम्हां फिरविसी जगदीशा |
कृपाळुवा परमपुरुषा | करुणा कैशी तुज न ये || २२ ||

अंगीकारी या शिरोमणि | तुज प्रार्थितो मधुर वचनी |
अंगीकार केलिया झणी | मज हातींचे न सोडावे || २३ ||

समुद्रे अंगीकारीला वडवानळ | तेणे अंतरी होतसे विहवळ |
ऐसे असोनी सर्वकाळ | अंतरी साठविला तयाने || २४ ||

कूर्मे पृथ्वीचा घेतला भार | तेणे सोडीला नाही बडिवार |
एवढा ब्रम्हांडगोळ थोर | त्याचा अंगीकार पै केला || २५ ||

शंकरे धरिले हाळाहळा | तेणे नीळवर्ण झाला गळा |
परी त्यागिले नाही गोपाळा | भक्तवत्सला गोविंदा || २६ ||

माझ्या अपराधांच्या परी | वर्णिता शिणली वैखरी |
दृष्ट पतीत दुराचारी | अधमाहुनि अधम || २७ ||

विषयासक्त मंदमति आळशी | कृपण कुव्यसनी मलिन मानसी |
सदा सर्वकाळ सज्जनांशी | द्रोह करी सर्वदा || २८ ||

वचनोक्ति नाही मधुर | अत्यंत जनांसी निष्ठुर |
सकळ पामरांमाजी पामर | व्यर्थ बडिवार जगी वाजे || २९ ||

काम क्रोध मद मत्सर | हे शरीर त्यांचे बिढार |
कामकल्पनेसी थार | दृढ येथे केला असे || ३० ||

अठरा भार वनस्पतींची लेखणी | समुद्र भरला मषीकरुनी |
माझे अवगुण लिहिता धरणी | तरी लिहिले न जाती || ३१ ||

ऐसा पतित मी खरा | परी तू पतितपावन शारद्गधरा |
तुवा अंगीकार केलिया गदाधरा | कोण दोषगुण गणील || ३२ ||

नीच रतली रायाशी | तिसी कोण म्हणेल दासी |
लोह लागता परिसासी | पूर्वास्थिती मग कैंची || ३३ ||

गावीचे होते लेंडवोहळ | गंगेसी मिळता गंगाजळ |
कागविष्ठेचे झाले पिंपळ | तयांसी निद्य कोण म्हणे || ३४ ||

तसा कुजाति मी अमंगळ | परी तुझा म्हणवितो केवळ |
कन्या देऊनिया कुळ | मग काय विचारावे || ३५ ||

जाणत असता अपराधी नर | तरी का केला अंगीकार |
अंगीकारावरी अव्हेर | समर्थे न केला पाहिजे || ३६ ||

धाव पाव रें गोविंदा | हाती घेवोनिया गदा |
करी माझ्या कर्माचा चेंदा | सच्चिदानंदा श्रीहरी || ३७ ||

तुझिया नामाची अपरिमित शक्ति | तेथें माझी पापे किती |
कृपाळुवा लक्ष्मीपती | बरवे चित्ती विचारी || ३८ ||

तुझे नाम पतितपावन | तुझे नाम कलिमलदहन |
तुझे नाम भवतारण | संकटनाशन नाम तुझे || ३९ ||

आता प्रार्थना ऐके कमळापती | तुझे नामी राहे माझी मती |
हेचि मागतो पुढतपुढती | परंज्योती व्यंकटेशा || ४० ||

तू अनंत तुझी अनंत नामे | तयांमाजी अति सुगमे |
ती मी अल्पमति प्रेमे | स्मरूनी प्रार्थना करीतसे || ४१ ||

श्रीव्यंकटेशा वासुदेवा | प्रद्युमन्ना अनंता केशवा |
संकर्षणा श्रीधरा माधवा | नारायणा आदिमूर्ते || ४२ ||

पद्मनाभा दामोदरा | प्रकाशगहना परात्परा |
आदिअनादि विश्वंभरा | जगदुद्धारा जगदीशा || ४३ ||

कृष्णा विष्णो हृषीकेशा | अनिरुद्धा पुरुषोत्तमा परेशा |
नृसिंह वामन भार्गवेशा | बौद्ध कलंकी निजमूर्ती || ४४ ||

अनाथरक्षका आदिपुरुषा | पूर्णब्रम्ह सनातन निर्दोषा |
सकळ मंगळ मंगळाधीशा | सज्जनजीवना सुखमूर्ते || ४५ ||

गुणातीता गुणज्ञा | निजबोधरूपा निमग्ना |
शुद्ध सात्विका सुज्ञा | गुणप्राज्ञा परमेश्वरा || ४६ ||

श्रीनिधीश्रीवत्सलांछन धरा | भयकृद्भयनाशना गिरीधरा |
दृष्टदैत्यसंहारकरा | वीर सुखकरा तू एक || ४७ ||

निखिल निरंजन निर्विकारा | विवेकखाणी- वैरागरा |
मधुमुरदैत्यसंहारकरा | असुरमर्दना उग्रमुर्ते || ४८ ||

शंखचक्रगदाधरा | गरुडवाहना भक्तप्रियकरा |
गोपीमनरंजना सुखकरा | अखंडित स्वभावे || ४९ ||

नानानाटक – सूत्रधारिया | जगद्व्यापका जगद्वर्या |
कृपासमुद्रा करुणालया | मुनिजनध्येया मूळमूर्ति || ५० ||

शेषशयना सार्वभौमा | वैकुंठवासिया निरुपमा |
भक्तकैवारिया गुणधामा | पाव आम्हां ये समयी || ५१ ||

ऐसी प्रार्थना करुनी देवीदास | अंतरी आठविला श्रीव्यंकटेश |
स्मरता हृदयी प्रकटला ईश | त्या सुखासी पार नाही || ५२ ||

हृदयी आविर्भवली मूर्ति | त्या सुखाची अलोलिक स्थिती |
आपुले आपण श्रीपती | वाचेहाती वदवीतसे || ५३ ||

ते स्वरूप अत्यंत सुंदर | श्रोती श्रवण कीजे सादर |
सावळी तनु सुकुमार | कुंकुमाकार पादपद्मे || ५४ ||

सुरेख सरळ अंगोळिका | नखे जैसी चंद्ररेखा |
घोटीव सुनीळ अपूर्व देखा | इंद्रनिळाचियेपरी || ५५ ||

चरणी वाळे घागरिया | वाकी वरत्या गुजरिया |
सरळ सुंदर पोटरिया | कर्दळीस्तंभाचियेपरी || ५६ ||

गुडघे मांडिया जानुस्थळ | कटितटि किंकिणी विशाळ |
खालते विश्वंउत्पत्तिस्थळ | वरी झळाळे सोनसळा || ५७ ||

कटीवरते नाभिस्थान | जेथोनि ब्रम्हा झाला उत्पन्न |
उदरी त्रिवळी शोभे गहन | त्रैलोक्य संपूर्ण जयामाजी || ५८ ||

वक्ष:स्थळी शोभे पदक | पाहोनी चंद्रमा अधोमुख |
वैजयंती करी लखलख | विद्युल्लतेचियेपरी || ५९ ||

हृदयी श्रीवत्सलांछन | भूषण मिरवी श्रीभगवान |
तयावरते कंठस्थान | जयासी मुनिजन अवलोकिती || ६० ||

उभय बाहुदंड सरळ | नखे चंद्रापरीस तेजाळ |
शोभती दोन्ही करकमळ | रातोत्पलाचियेपरी || ६१ ||

मनगटी विराजती कंकणे | बाहुवटी बाहुभूषणे |
कंठी लेइली आभरणे | सूर्यकिरणे उगवली || ६२ ||

कंठावरुते मुखकमळ | हनुवटी अत्यंत सुनीळ |
मुखचंद्रमा अति निर्मळ | भक्तस्नेहाळ गोविंदा || ६३ ||

दोन्ही अधरांमाजी दंतपंक्ती | जिव्हा जैसी लावण्यज्योती |
अधरामृतप्राप्तीची गती | ते सुख जाणे लक्ष्मी || ६४ ||

सरळ सुंदर नासिक | जेथे पवनासी झाले सुख |
गंडस्थळीचे तेज अधिक | लखलखीत दोन्ही भागी || ६५ ||

त्रिभुवनीचे तेज एकटवले | बरवेपण शिगेसी आले |
दोन्ही पातयांनी धरिले | तेज नेत्र श्रीहरीचे || ६६ ||

व्यंकटा भृकुटिया सुनीळा | कर्णद्वयाची अभिनव लीळा |
कुंडलांच्या फाकती कळा | तो सुखसोहळा अलोलिक || ६७ ||

भाळ विशाळ सुरेख | वरती शोभे कस्तूरीटिळक |
केश कुरळ अलोलिक | मस्तकावरी शोभती || ६८ ||

मस्तकी मुकुट आणि किरीटी | सभोवती झिळमिळ्याची दाटी |
त्यावरी मयूरपिच्छांची वेटी |ऐसा जगजेठी देखिला || ६९ ||

ऐसा तू देवाधिदेव | गुणातीत वासुदेव |
माझिया भक्तिस्तव | सगुणरूप झालासी || ७० ||

आता करू तुझी पूजा | जगज्जीवना अधोक्षजा |
आर्ष भावार्थ हा माझा | तुज अर्पण केला असे || ७१ ||

करुनी पंचामृतस्नान | शुद्धोधक वरी घालून |
तुज करू मंगलस्नान | पुरुषसूक्ते करुनिया || ७२ ||

वस्त्रे आणि यज्ञोपवीत | तुजलागी करू प्रीत्यर्थ |
गंधाक्षता पुष्पे बहुत | तुजलागी समर्पू || ७३ ||

धूप दीप नैवेध्य | फल तांबूल दक्षिणा शुद्ध |
वस्त्रे भूषणे गोमेद | पद्मरागादिकरून || ७४ ||

भक्तवत्सला गोविंदा | ही पूजा अंगीकारावी परमानंदा |
नमस्कारुनी पादारविंदा | मग प्रदक्षिणा आरंभिली || ७५ ||

ऐसा षोडशोपचारे भगवंत | यथाविधी पूजिला हृदयात |
मग प्रार्थना आरंभिली बहुत | वरप्रसाद मागावया || ७६ ||

जयजयाजी श्रुतिशास्त्रआगमा | जयजयाजी गुणातीत परब्रम्हा |
जयजयाजी हृदयवासिया रामा | जगदुद्धारा जगद्गुरो || ७७ ||

जयजयाजी पंकजाक्षा | जयजयाजी कमळाधीशा |
जयजयाजी पूर्णपरेशा | अव्यक्तव्यक्ता सुखमूर्ते || ७८ ||

जयजयाजी भक्तरक्षका | जयजयाजी वैकुंठनायका |
जयजयाजी जगपालका | भक्तांसी सखा तू एक || ७९ ||

जयजयाजी निरंजना | जयजयाजी परात्परगहना |
जयजयाजी शुन्यातीत निर्गुणा | परिसावी विज्ञापना एक माझी || ८० ||

मजलागी देई ऐसा वर | जेणे घडेल परोपकार |
हेचि मागणे साचार | वारंवार प्रार्थितसे || ८१ ||

हा ग्रंथ जो पठण करी | त्यासी दु:ख नसावे संसारी |
पठणमात्रे चराचरी | विजयी करी जगाते || ८२ ||

लग्नार्थीयाचे व्हावे लग्न | धनार्थियासी व्हावे धन |
पुत्रार्थियासे मनोरथ पूर्ण | पुत्र देऊनी करावे || ८३ ||

पुत्र विजयी आणि पंडित | शतायुषी भाग्यवंत |
पितृसेवेसी अत्यंत रत | जायचे चित्त सर्वकाळ || ८४ ||

उदार आणि सर्वज्ञ | पुत्र देई भक्तांलागून |
व्याधिष्ठांची पीडा हरण | तत्काळ कीजे गोविंदा || ८५ |

क्षय अपस्मार कुष्ठादिरोग | ग्रंथपठणे सरावा भोग |
योगाभ्यासियासी योग | पठणमात्रे साधावा || ८६ ||

दरिद्री व्हावा भाग्यवंत | शत्रूचा व्हावा नि:पात |
सभा व्हावी वश समस्त | ग्रंथपठणेकरुनिया || ८७ ||

विद्यार्थीयासी विद्या व्हावी | युद्धी शस्त्रे न लागावी |
पठणे जगात कीर्ती व्हावी | साधु साधु म्हणोनिया || ८८ ||

अंती व्हावे मोक्षसाधन | ऐसे प्रार्थनेसी दीजे मन |
एवढे मागती वरदान | कृपानिधे गोविंदा || ८९ ||

प्रसन्न झाला व्यंकटरमण | देवीदासासी दिधले वरदान |
ग्रंथाक्षरी माझे वचन | यथार्थ जाण निश्चयेसी || ९० ||

ग्रंथी धरोनी विश्वास | पठण करील रात्रंदिवस |
त्यालागी मी जगदीश | क्षण एक न विसंबे || ९१ ||

इच्छा धरुनी करील पठण | त्याचे सांगतो मी प्रमाण |
सर्व कामनेसी साधन | पठण एक मंडळ || ९२ ||

पुत्रार्थियाने तीन मास | धनार्थियाने एकवीस दिवस |
कन्यार्थियाने षण्मास | ग्रंथ आदरे वाचवा || ९३ ||

क्षय अपस्मार कुष्ठादिरोग | इत्यादि साधने प्रयोग |
त्यासी एक मंडळ सांग | पठणे करुनी कार्यसिद्धी || ९४ ||

हे वाक्य माझे नेमस्त | ऐसे बोलिला श्रीभगवंत |
साच न मानी जयाचे चित्त | त्यासी अध:पात सत्य होय || ९५ ||

विश्वास धरील ग्रंथपठणी | त्यासी कृपा करील चक्रपाणी |
वर दिधला कृपा करूनि | अनुभवे कळो येईल || ९६ ||

गजेंद्राचिया आकांतासी | कैसा पावला हृषीकेशी |
प्रल्हादाचिया भावार्थासी | स्तंभातूनि प्रकटला || ९७ ||

वज्रासाठी गोविंदा | गोवर्धन परमानंदा |
उचलोनिया स्वानंदकंदा | सुखी केलें तये वेळी || ९८ ||

वत्साचेपरी भक्तांसी | मोहे पान्हावे धेनु जैसी |
मातेच्या स्नेहतुलनेसी | त्याचपरी घडलेसे || ९९ ||

ऐसा तू माझा दातार | भक्तासी घालिसी कृपेची पाखर |
हा तयाचा निर्धार | अनाथनाथ नाम तुझे || १०० ||

श्री चैतन्यकृपा अलोकिक | संतोषोनी वैकुंठनायक |
वर दिधला अलोकिक | जेणे सुख सकळांसी || १०१ ||

हा ग्रंथ लिहिता गोविंद | या वचनी न धरावा भेद |
हृदयी वसे परमानंद | अनुभवसिद्ध सकळांसी || १०२ ||

या ग्रंथीचा इतिहास | भावे बोलिला विष्णुदास |
आणिक न लागती सायास | पठणमात्रे कार्यसिद्धी || १०३ ||

पार्वतीस उपदेशी कैलासनायक | पूर्णानंद प्रेमसुख |
त्याचा पार न जाणती ब्रम्हादिक | मुनि सुरवर विस्मित || १०४ ||

प्रत्यक्ष प्रकटेल वनमाळी | त्रैलोक्य भजत त्रिकाळी |
ध्याती योगी आणि चंद्रमौळी | शेषाद्रीपर्वती उभा असे || १०५ ||

देवीदास विनवी श्रोतया चतुरा | प्रार्थनाशतक पठण करा |
जावया मोक्षाचिया मंदिरा | काही न लागती सायास || १०६ ||

एकाग्रचित्ते एकांती | अनुष्ठान कीजे मध्यराती |
बैसोनिया स्वस्थचित्ती | प्रत्यक्ष मूर्ति प्रकटेल || १०७ ||

तेथें देहभावासी नुरे ठाव | अवघा चतुर्भुज देव |
त्याचे चरणी ठेवोनि भाव | वरप्रसाद मागावा || १०८ ||

इति श्री देवी दास विरचितं श्री व्यंकटेश स्तोत्रं संपूर्णम | श्री व्यंकटेशार्पणमस्तु ||

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