Shri Vishnu Chalisa In Hindi (श्री विष्णु चालीसा)
श्री विष्णु चालीसा भगवान विष्णु का आशीर्वाद पाने के लिए सबसे शक्तिशाली भजनों में से एक है।
यह हिंदू धर्म में एक बहुत लोकप्रिय मंत्र है।
इसमें 40 श्लोक हैं जो भगवान विष्णु को समर्पित हैं। जो कोई भी पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ विष्णु चालीसा का पाठ करता है उस पर इसका चमत्कारी प्रभाव पड़ता है।
Benefits of Shri Vishnu Chalisa (श्री विष्णु चालीसा के लाभ)
ऐसा कहा जाता है कि विष्णु चालीसा का पाठ करने या इसे सुनने से भी पाप और भय दूर हो जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु की कृपा और सुरक्षा पाने के लिए विष्णु चालीसा का पाठ करना सबसे अच्छा उपाय है।
यह भी माना जाता है कि विष्णु चालीसा अभी भी फायदेमंद है, भले ही आप इसका अर्थ नहीं जानते या समझते हैं।
जो व्यक्ति लगातार समाज से हानि और अपमान से पीड़ित हैं, उन्हें नियमित रूप से विष्णु चालीसा का पाठ करना चाहिए।
ऐसा माना जाता है कि जो कोई भी पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ विष्णु चालीसा का पाठ करता है, उसे भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। वह अपने भक्तों को शांति, समृद्धि और शुभता का आशीर्वाद देते हैं।

यह मन को उसकी सभी कमजोरियों, भ्रमों और चंचल स्वभाव से शुद्ध करता है। यह आत्मविश्वास को बढ़ाता है और जीवन के हर मोर्चे पर सफलता प्रदान करता है।
यह घर से बुरे मंत्र और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है। यह घर में सकारात्मक कंपन को बढ़ाता है।
यह जप करने वाले के लिए सुरक्षा कवच का काम करता है।
इसका परम लाभ मोक्ष की प्राप्ति है।
ऐसा माना जाता है कि एकादशी के दिन भगवान विष्णु चालीसा का पाठ करने से भक्तों के जीवन से सभी दुखों और दुखों को दूर करने में मदद मिलती है।
Shri Vishnu Chalisa Doha (श्री विष्णु चालीसा दोहा)
विष्णु सुनिए विनय
सेवक की चितलाय ।
कीरत कुछ वर्णन करूं
दीजै ज्ञान बताय ॥
Shri Vishnu Chalisa Chaupai (श्री विष्णु चालीसा चौपाई)
नमो विष्णु भगवान खरारी,
कष्ट नशावन अखिल बिहारी ।
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी,
त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥
सुन्दर रूप मनोहर सूरत,
सरल स्वभाव मोहनी मूरत ।
तन पर पीताम्बर अति सोहत,
बैजन्ती माला मन मोहत ॥
शंख चक्र कर गदा विराजे,
देखत दैत्य असुर दल भाजे ।
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे,
काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥
सन्तभक्त सज्जन मनरंजन,
दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ।
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन,
दोष मिटाय करत जन सज्जन ॥
पाप काट भव सिन्धु उतारण,
कष्ट नाशकर भक्त उबारण ।
करत अनेक रूप प्रभु धारण,
केवल आप भक्ति के कारण ॥
धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा,
तब तुम रूप राम का धारा ।
भार उतार असुर दल मारा,
रावण आदिक को संहारा ॥
आप वाराह रूप बनाया,
हिरण्याक्ष को मार गिराया ।
धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया,
चौदह रतनन को निकलाया ॥
अमिलख असुरन द्वन्द मचाया,
रूप मोहनी आप दिखाया ।
देवन को अमृत पान कराया,
असुरन को छवि से बहलाया ॥
कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया,
मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया ।
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया,
भस्मासुर को रूप दिखाया ॥
वेदन को जब असुर डुबाया,
कर प्रबन्ध उन्हें ढुढवाया ।
मोहित बनकर खलहि नचाया,
उसही कर से भस्म कराया ॥
असुर जलन्धर अति बलदाई,
शंकर से उन कीन्ह लड़ाई ।
हार पार शिव सकल बनाई,
कीन सती से छल खल जाई ॥
सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी,
बतलाई सब विपत कहानी ।
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी,
वृन्दा की सब सुरति भुलानी ॥
देखत तीन दनुज शैतानी,
वृन्दा आय तुम्हें लपटानी ।
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी,
हना असुर उर शिव शैतानी ॥
तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे,
हिरणाकुश आदिक खल मारे ।
गणिका और अजामिल तारे,
बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे ॥
हरहु सकल संताप हमारे,
कृपा करहु हरि सिरजन हारे ।
देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे,
दीन बन्धु भक्तन हितकारे ॥
चाहता आपका सेवक दर्शन,
करहु दया अपनी मधुसूदन ।
जानूं नहीं योग्य जब पूजन,
होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन ॥
शीलदया सन्तोष सुलक्षण,
विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण ।
करहुं आपका किस विधि पूजन,
कुमति विलोक होत दुख भीषण ॥
करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण,
कौन भांति मैं करहु समर्पण ।
सुर मुनि करत सदा सेवकाई,
हर्षित रहत परम गति पाई ॥
दीन दुखिन पर सदा सहाई,
निज जन जान लेव अपनाई ।
पाप दोष संताप नशाओ,
भव बन्धन से मुक्त कराओ ॥
सुत सम्पति दे सुख उपजाओ,
निज चरनन का दास बनाओ ।
निगम सदा ये विनय सुनावै,
पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै ॥
॥ इति श्री विष्णु चालीसा ॥
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