Shri Maruti Stotra (श्री मारुती स्तोत्र) Lyrics


Shri Maruti Stotra (श्री मारुती स्तोत्र) Lyrics

हिंदू धर्म के अनुसार, मंगलवार को भगवान हनुमान को समर्पित करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। भक्त सिद्धि, धन, भलाई, शांति और बुरी ताकतों से सुरक्षा प्राप्त करने के लिए मंगलवार को भगवान हनुमान की पूजा करते हैं। भगवान हनुमान भगवान शिव के अवतार हैं। भगवान हनुमान अत्यंत सीधे, सहानुभूतिपूर्ण, आज्ञाकारी और साहसी हैं। हनुमान अपने भक्तों को अति उत्तम लाभ देने में कभी देर नहीं करते।

हनुमानजी को मारुति, बजरंगबली, अंजनी पुत्र, महावीर, पवनीपुत्र आदि भी कहा जाता है। वे अंजनी देवी और वायु या मारुति के पुत्र हैं। वह भगवान श्री राम के सबसे बड़े भक्त हैं, और वे वफादारी और प्रतिबद्धता के प्रतीक हैं। मारुति स्तोत्र का पाठ भगवान मारुति से आशीर्वाद प्राप्त करने में मदद करता है।

Benefits of Shri Maruti Stotra (श्री मारुती स्तोत्र के लाभ)

मारुति स्तोत्र के नियमित जाप से व्यक्ति की ताकत बढ़ती है और वह हर चुनौतीपूर्ण स्थिति में जीत देखता है।

मारुति स्तोत्र का पाठ करने वाले को भूत-प्रेत कभी परेशान नहीं करते।

मारुति स्तोत्र का पाठ करने से खराब स्वास्थ्य स्थितियों पर विजय प्राप्त करने में मदद मिलती है। आजकल, बहुत से लोग असफल विवाह, मानसिक समस्याओं और वित्तीय समस्याओं से पीड़ित हैं। मारुति स्तोत्र का पाठ करने से आपको इन समस्याओं को दूर करने के लिए सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।

Shri Maruti Stotra (श्री मारुती स्तोत्र) Lyrics

प्रतिदिन मारुति स्तोत्र का पाठ करने से जीवन में सफलता मिलेगी।
यह स्तोत्र आपको सबसे कमजोर परिस्थितियों में भी संघर्ष करने में मदद करता है; लड़ने की ताकत देता है।
यह आपकी कार्य कुशलता को बढ़ाता है।

Shri Maruti Stotra (श्री मारुती स्तोत्र)

भीमरूपी महारुद्रा, वज्र हनुमान मारुती ।
वनारी अंजनीसूता, रामदूता प्रभंजना ।।१।।

महाबळी प्राणदाता, सकळां उठवीं बळें ।
सौख्यकारी शोकहर्ता, धूर्त वैष्णव गायका ।।२।।

दिनानाथा हरीरूपा, सुंदरा जगदंतरा ।
पाताळ देवता हंता, भव्य सिंदूर लेपना ।।३।।

लोकनाथा जगन्नाथा, प्राणनाथा पुरातना ।
पुण्यवंता पुण्यशीला, पावना परतोषका ।।४।।

ध्वजांगे उचली बाहू, आवेशें लोटिला पुढें ।
काळाग्नी काळरुद्राग्नी, देखतां कांपती भयें ।।५।।

ब्रह्मांड माईला नेणों, आवळें दंतपंगती ।
नेत्राग्नी चालिल्या ज्वाळा, भृकुटी त्राहिटिल्या बळें ।।६।।

पुच्छ तें मुरडिलें माथां, किरीटी कुंडलें बरीं ।
सुवर्णकटीकासोटी, घंटा किंकिणी नागरा ।।७।।

ठकारे पर्वताऐसा, नेटका सडपातळू ।
चपळांग पाहतां मोठें, महाविद्युल्लतेपरी ।।८।।

कोटिच्या कोटि उड्डाणें, झेपावे उत्तरेकडे ।
मंद्राद्रीसारिखा द्रोणू, क्रोधे उत्पाटिला बळें ।।९।।

आणिता मागुता नेला, गेला आला मनोगती ।
मनासी टाकिलें मागें, गतीस तूळणा नसे ।।१०।।

अणूपासोनि ब्रह्मांडा, येवढा होत जातसे ।
तयासी तुळणा कोठें, मेरुमंदार धाकुटें ।।११।।

ब्रह्मांडाभोंवते वेढे, वज्रपुच्छ घालूं शके ।
तयासि तूळणा कैचीं, ब्रह्मांडीं पाहतां नसे ।।१२।।

आरक्त देखिलें डोळां, गिळीलें सूर्यमंडळा ।
वाढतां वाढतां वाढे, भेदिलें शून्यमंडळा ।।१३।।

धनधान्यपशुवृद्धी, पुत्रपौत्र समग्रही ।
पावती रूपविद्यादी, स्तोत्र पाठें करूनियां ।।१४।।

भूतप्रेतसमंधादी, रोगव्याधी समस्तही ।
नासती तूटती चिंता, आनंदें भीमदर्शनें ।।१५।।

हे धरा पंधराश्लोकी, लाभली शोभली बरी।
दृढदेहो निसंदेहो, संख्या चंद्रकळागुणें ।।१६।।

रामदासी अग्रगण्यू, कपिकुळासी मंडण।
रामरूपी अंतरात्मा, दर्शनें दोष नासती ।।१७।।

।। इति श्रीरामदासकृतं संकटनिरसनं मारुतिस्तोत्रं संपूर्णम् ।।

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