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श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Shravana Putrada Ekadashi Vrat Katha In Hindi)

श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Shravana Putrada Ekadashi Vrat Katha)

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श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Shravana Putrada Ekadashi Vrat Katha In Hindi)

श्रावण पुत्रदा एकादशी (Shravana Putrada Ekadashi) हिंदू धर्म में एक पवित्र दिन माना जाता है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार यह दिन श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन होता है।

ऐसी मान्यता है कि श्रावण पुत्रदा एकादशी के दिन व्रत का पालन करने से वाजपेय यज्ञ का पुण्य प्राप्त होता है। श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत (Shravana Putrada Ekadashi Vrat) का पालन करने से मनुष्य के पूर्व जन्म के पाप मिट जाते हैं और उसे पुत्र की प्राप्ति होती है।

श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत (Shravana Putrada Ekadashi Vrat) और श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Shravana Putrada Ekadashi Vrat Katha) के पुण्य प्रभाव से भक्त को एक कुशल संतान की प्राप्ति होती है और भक्त पर भगवान श्री विष्णु जी की कृपा होती है।

हिन्दू कैलेंडर में पुत्रदा एकादशी दो बार आती है। एक पुत्रदा एकादशी पौष माह में आती है और दूसरी पुत्रदा एकादशी श्रावण माह में आती है।

पौष माह में आने वाली एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहते हैं और श्रावण माह में आने वाली एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी कहते हैं।

अगर आप पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा के बारे में लेख पढ़ना चाहते हैं तो निचे दिए गए लिंक पर क्लिक कीजिए। यहाँ पर इस विषय में लेख विस्तार से लिखा गया है।

पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा

जैसे कि नाम से ही स्पष्ट है पुत्रदा एकादशी का महत्त्व पुत्र/संतान प्राप्ति से है। इसलिए हिन्दू धर्म में मानने वाले श्रद्धालु इस दिन व्रत का पालन करते हैं ताकि वे सुन्दर एवं शुशील सुपुत्र प्राप्त कर सकें।

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इस लेख में हम श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत (Shravana Putrada Ekadashi Vrat), श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत विधि (Shravana Putrada Ekadashi Vrat Vidhi) और श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Shravana Putrada Ekadashi Vrat Katha) के बारे में जानेंगे।

श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत और श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा कब करनी चाहिए? (When to do Shravana Putrada Ekadashi Vrat and Shravana Putrada Ekadashi Vrat Katha?)

श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत (Shravana Putrada Ekadashi Vrat) और श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Shravana Putrada Ekadashi Vrat Katha) ईश्वर से सुख प्राप्ति, पूर्व जन्म के पापों से मुक्ति, सुपुत्र प्राप्ति और आध्यात्मिक सफाई के बारे में है।

यह दिन भगवान विष्णु जी को समर्पित है। हिंदू मान्यता के अनुसार एक चंद्र चरण के दो अलग-अलग चरण होते हैं – कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। प्रत्येक चरण (पक्ष) 14 दिनों का होता है। इन दोनों पक्षों को ही हिन्दू कैलेंडर माह के पक्ष भी कहा जाता है।

दोनों पक्षों के ग्यारहवें दिन को एकादशी कहा जाता है। इसलिए एक माह में दो एकादशी के दिन आते हैं। इस दिन रखे जाने वाले व्रत या कर्मकांड को एकादशी व्रत कहा जाता है और दुनिया भर में लाखों हिंदुओं द्वारा मनाया जाता है।

श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। इस दिन ही श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत (Shravana Putrada Ekadashi Vrat) तथा श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Shravana Putrada Ekadashi Vrat Katha) रखनी चाहिए।

श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत (Shravana Putrada Ekadashi Vrat) एक दिन पहले सूर्यास्त से शुरू होकर एकादशी के अगले दिन सूर्योदय के बाद तक रखा जाता है।

श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा विधि (Shravana Putrada Ekadashi Vrat Katha Vidhi In Hindi)

श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत (Shravana Putrada Ekadashi Vrat) और श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Shravana Putrada Ekadashi Vrat Katha) की पूजा विधि इस प्रकार है।

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
  • घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
  • भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें।
  • भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी अर्पित करें।
  • अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।
  • व्रत कथा का पाठ करें। (व्रत कथा इस लेख में निचे दी गयी है। कृपया कर के व्रत कथा वहां से पढ़ें।)
  • भगवान की आरती करें। (इस लेख के अंत में एकादशी आरती के लेख का लिंक दिया गया है। उस पर क्लिक कर के आप एकादशी आरती पढ़ सकते हैं।)
  • भगवान को भोग लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं।
  • इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें।
  • इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।
  • अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत खोलें और सात्विक भोजन करें। बहुत से लोग व्रत के दौरान फलाहार ग्रहण करते हैं और कुछ लोग कुछ भी खाना ग्रहण नहीं करते। यहाँ तक की पानी भी ग्रहण नहीं करते। परन्तु आप व्रत के दौरान फलाहार ग्रहण कर सकते हैं।
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जया एकादशी (Jaya Ekadashi) के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी अपरा एकादशी व्रत कथा (Apara Ekadashi Vrat Katha In Hindi)

श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत और श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा के लाभ (Benefits of Shravana Putrada Ekadashi Vrat and Shravana Putrada Ekadashi Vrat Katha)

श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत (Shravana Putrada Ekadashi Vrat) और श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Shravana Putrada Ekadashi Vrat Katha) का लाभ उन लोगों के लिए है जो भगवान विष्णु की आस्था और पूजा करते हैं।

इसे हिंदू धर्म में सबसे फलदायी व्रतों में से एक माना जाता है। एकादशी व्रत के लाभ आपको शांति, सद्भाव और समृद्धि ला सकते हैं।

इस पवित्र हिंदू अनुष्ठान के भक्त, मन की शांति के साथ पूर्व जन्म के पापों से मुक्ति, सुपुत्र प्राप्ति और श्री विष्णु जी की कृपा प्राप्त करते हैं।

श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत (Shravana Putrada Ekadashi Vrat) और श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Shravana Putrada Ekadashi Vrat Katha) को मनुष्य द्वारा ईश्वर से पुत्र की प्राप्ति की कामना तथा विष्णु लोक की प्राप्ति के लिए अति योग्य माना जाता है।

जो मनुष्य इस महत्त्वपूर्ण श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Shravana Putrada Ekadashi Vrat Katha) को पढ़ता या सुनता है उसे अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Shravana Putrada Ekadashi Vrat Katha In Hindi)

द्वापर युग के समय की बात है। एक महिष्मती नाम का नगर हुआ करता था। महिष्मति का राजा बहुत ही दयालु था जिसका नाम महाजित था। परन्तु एक बात से वह सदैव दुःखी रहता था। उसके दुःख का कारण पुत्रहीनता था।

राजा को राज्य का सुख, वैभव और भोग तथा विलास बहुत ही कष्टदायक प्रतीत होता था। राजा महाजित का मानना था कि पुत्र के बिना व्यक्ति को इस लोक और परलोक दोनों में सुख की प्राप्ति नहीं होती है।

राजा महाजित ने पुत्र की प्राप्ति के लिए बहुत उपाय किये थे, परन्तु उसे किसी भी उपाय से फल नहीं मिला। महाजित धीरे-धीरे वृद्धावस्था की ओर बढ़ रहा था और उसकी चिन्ता भी बढ़ती ही जा रही थी।

एक दिन राजा महाजित ने अपनी महासभा को सम्बोधित करते हुए कहा – “न तो मैंने अपने जीवन काल में कोई पाप या दुराचार किया है और न ही किसी के साथ अन्याय किया है। न ही मैंने कभी अपनी प्रजा को कष्ट दिया है और न कभी देवता और ब्राह्मणों का अनादर किया है। बल्कि मैंने हमेशा से ही दयालु भाव से दान किया है।”

“इस प्रकार धर्म के साथ राज्य करने के बाद भी मैं बहुत ही कष्ट भोग रहा हूँ। आखिर इसका क्या कारण है? में कुछ भी नहीं समझ पा रहा हूँ। क्या मैं इस जीवन में ऐसे ही कष्ट भोगता रहूँगा? अब आप विद्वान् लोग ही इस पर विचार कर के मुझे बतलाइये।”

राजा महाजित के इस प्रकार महासभा को सम्बोधित करने पर उनके कष्ट के निवारण हेतु महामंत्री अपने कुछ सहयोगियों के साथ वन की तरफ गये।

वे लोग वन में जाकर किसी ऋषि या मुनि से विमर्श करके राजा के दुख का निवारण चाहते थे। कई दिनों तक वन में भटकने पर उन्हें एक आश्रम दिखाई दिया।

उस आश्रम में महामंत्री तथा उसके सहयोगियों की भेंट वयोवृद्ध और धर्म के ज्ञाता महर्षि लोमश से हुई। महामंत्री ने महर्षि लोमश से कहा – “हे गुरुदेव! हम लोग आपका दर्शन कर के धन्य हुए।”

महर्षि लोमश ने महामंत्री और उसके सहयोगियों से उनके आने का प्रयोजन पूछा। महामंत्री ने महर्षि लोमश को सारा वृतांत बताया और कहा कि पुत्र न होने के कारण राजा महाजित बहुत दुःखी हैं।

महामंत्री ने कहा – “उनके इस दुःख से प्रजा भी दुःखी है क्योंकि हर राज्य की प्रजा का यह कर्तव्य है कि राजा के सुख और दुःख में प्रजा भी अपना सुख और दुःख माने।”

“हम लोगों को उनके पुत्रहीनता का कारण अभी तक ज्ञात नहीं है। इसलिए हम आपके पास आपका मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए आये हैं। हे ऋषिवर! आप हमारे राजा और हमारा कष्ट दूर करने का उपाय बताइये।”

ऐसी करुणा से भरी प्रार्थना सुनकर महर्षि लोमश ने अपने नेत्र बन्द करके अपनी योग शक्ति से राजा के पूर्व जन्मों पर विचार किया।

योगदृष्टि से सब देखने के बाद महर्षि लोमश ने कहा – “हे वत्स! यह राजा पूर्व जन्म में बहुत ही पापी था और बुरे कर्मों में संलग्न था। वह बहुत ही निर्धन था और अन्न-जल की तलाश में इधर-उधर भटकता रहता था। एक बार ज्येष्ठ माह की शुक्ल एकादशी के दिन इसने बहुत ही घनिष्ट पाप किया था।”

“उस दिन वह दो दिन से भूखा और प्यासा भटक रहा था तभी उसे भटकते हुए एक जलाशय दिखाई दिया। उस जलाशय के पास एक गाय पानी पी रही थी।”

“प्यासी गाय जलाशय से पानी पी ही रही थी कि उसने उसे वहां से मारकर भगा दिया और उस जलाशय से खुद पानी पीने लग गया। एकादशी के दिन भूके और प्यासे रहने के कारण उसे इस जन्म में एक राजा का जीवन तो प्राप्त हो गया परन्तु प्यासी गाय को मार कर भगाने से उसे इस जन्म में पुत्रहीनता का कष्ट भोगना पड़ रहा है।”

आगे महर्षि लोमश ने कहा – “यदि तुम सभी श्रावण महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन पुत्रदा एकादशी के व्रत का पालन विधिपूर्वक करो और रात को जागरण तथा श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Shravana Putrada Ekadashi Vrat Katha) करो और उस व्रत का फल राजा को समर्पित कर दो, तो तुम्हारे राजा को पुत्र की प्राप्ति होगी।”

इसके बाद राज्य की प्रजा ने महर्षि लोमश की आज्ञा के अनुसार श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी का नियम अनुसार व्रत तथा श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Shravana Putrada Ekadashi Vrat Katha) की और द्वादशी को उसका फल राजा को समर्पित कर दिया।

व्रत के पुण्य प्रभाव से रानी ने गर्भ धारण किया और पूरे नौ माह के बाद एक बहुत ही तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। अब राजा बहुत ही सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगा।

इस कथा से हमें श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत (Shravana Putrada Ekadashi Vrat) और श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Shravana Putrada Ekadashi Vrat Katha) का महत्त्व पता चलता है।

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