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शिव पुराण (Shiv Puran) में क्या लिखा है?

शिव पुराण में क्या लिखा है (What is Written in Shiv Puran)
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हिन्दू धर्म के प्रमुख पुराणों में से एक है “शिव पुराण (Shiv Puran)“। यह पुराण भगवान शिव की महत्वपूर्ण कथाओं, उपदेशों, और महत्व के बारे में है।

शिव पुराण का अध्ययन करने से हम भगवान शिव के अनुपम महत्व और उनके विशेष रूपों को समझ सकते हैं।

इस लेख में, हम देखेंगे कि शिव पुराण (Shiv Puran) में कौन-कौन सी महत्वपूर्ण बातें और कथाएं लिखी गई हैं।

शिव पुराण (Shiv Puran) में भगवान शिव का परिचय

शिव पुराण (Shiv Puran) में पहले ही अध्याय में भगवान शिव का परिचय किया गया है। उन्हें महादेव, नीलकंठ, भूतेश, गिरीश, आदि नामों से जाना जाता है।

वे जटाधारी हैं और गंगा का आधार होते हैं। माँ गंगा उनके सर पर विराजमान हैं और वहीँ से प्रवाहित होती हैं। शिव पुराण (Shiv Puran) में भगवान शिव की अनेक महिमाओं का वर्णन भी मिलता है, जो उनके विभिन्न पहलुओं को प्रतिष्ठित करती हैं।

भगवान शिव को देवों के देव – महादेव भी कहा जाता है। वे सभी देवों में सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। शिव जी का न कोई आदि है न अंत है। वे इस सृष्टि से पहले भी थे और सृष्टि के बाद भी होंगे।

भगवान शिव को महाकाल भी कहा जाता है। वे काल से परे हैं और उनपर काल का कोई प्रभाव नहीं होता है। वे सृष्टि के विध्वंसक भी कहे जाते हैं।

शिव पुराण (Shiv Puran) में वर्णित महत्वपूर्ण कथाएं

शिव पुराण (Shiv Puran) में भगवान शिव की विभिन्न अद्भुत लीला-कथाओं का वर्णन है। यह कथाएं शिव भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और उन्हें भगवान के प्रति अधिक भक्तिभाव से भरपूर करती हैं।

इनमें से कुछ महत्वपूर्ण कथाएं संक्षिप्त में इस प्रकार हैं:

शिव पुराण (Shiv Puran) में सती और शिव विवाह

शिव पुराण (Shiv Puran) में सती और शिव का विवाह का वर्णन है। सती माता आदि शक्ति दुर्गा का ही स्वरुप हैं। सती ने अपने पिता प्रजापति दक्ष के विचार के विपरीत शिव जी के साथ विवाह किया था।

बाद में प्रजापति दक्ष द्वारा एक मत्वपूर्ण यज्ञ रखा गया जिसमें सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया गया था लेकिंग भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया गया।

इस बात से सती माता को ठेस पहुंची और उन्होंने अपने पति का यह अपमान मानकर उस यज्ञ के अग्नि कुंड में ही आत्मदाह कर दिया। इस बात से शिव जी बहुत क्रोधित हुए और प्रजापति दक्ष को उनके दिव्य रूप वीरभद्र ने दंड दिया था।

शिव पुराण (Shiv Puran) में भस्मासुर की कथा

भस्मासुर एक दानव था जिसने भगवान शिव की तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया और उनसे वरदान प्राप्त किया।

भगवान शिव ने उस से प्रसन्न हो कर उसे उसका मन चाहा वरदान दिया कि वो दानव जिस किसी के सर पर हाथ रखेगा वो व्यक्ति वहीँ पर भस्म हो जायेगा।

वरदान मिलते ही भस्मासुर ने इस वरदान का परिक्षण करना चाहा और भगवान शिव के सर पर ही हाथ रखने के लिए दौड़ा चला आया। परन्तु भगवान विष्णु ने नर्तकी मोहिनी रूप धारण कर के भस्मासुर को उसी के द्वारा भस्म करवा दिया।

शिव पुराण (Shiv Puran) में कामदहन कथा

जब असुर राज ताड़कासुर अपनी कठोर तपस्या से इतना शक्तिशाली हो गया था कि वह देवताओं को आये दिन परेशान कर रहा था।

ताड़कासुर को भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त था लेकिन उसी वरदान के अंतर्गत उसका वध केवल भगवान शिव के तेज़ से कोई उत्पन्न हुआ ही कर सकता था।

भगवान शिव उस समय समाधि में लीन थे और देवराज इंद्रा इस वजह से बड़े चिंतित थे। अगर भगवान शिव ऐसे ही समाधि में लीन रहेंगे तो ताड़कासुर का वध कौन करेगा।

देवराज इंद्र भगवान शिव की समाधि भंग करने के लिए काम देव को अपना दिव्य बाण शिव जी पर चलाने के लिए कहते हैं ताकि शिव जी का आकर्षण माँ पार्वती के प्रति हो सके।

काम देव के इस उदंड कार्य को देख कर भगवान शिव ने अपने तीसरे ज्ञानचक्षु से काम देव को भस्म कर दिया। इस लीला को प्रत्येक मनुष्य से भी जोड़ कर देखा जा सकता है।

प्रत्येक मनुष्य को भी कामरूपी शत्रु को भस्म करके अपने अंतर्मन की गहराईयों में उतर कर अंतर्मुखी होकर अध्यात्म के मार्ग पर प्रशस्त होना चाहिए।

शिव पुराण (Shiv Puran) में समुद्र मंथन का वर्णन

इस दिग्दर्शनीय कथा में देवों और असुरों के बीच समुद्र मंथन का वर्णन है। इस दौरान विष की उत्पत्ति होती है और देवता और असुर दोनों ही विष को ग्रहण करने से मना कर देते हैं।

इसी समय भगवान शिव वहां आकर के विश्व के कल्याण के लिए उस विष को ग्रहण करते हैं और माँ पार्वती अपने हाथ से शिव जी के कंठ पर उस विष को रोकती हैं।

भगवान शिव के उस विष को अपने कंठ पर रोकने से उनका कंठ नीला पड़ जाता है। इसी वजह से उन्हें नीलकंठ भी कहा जाता है।

शिव पुराण में क्या लिखा है (What is Written in Shiv Puran)

शिव पुराण (Shiv Puran) में काशी क्षेत्र की महिमा

शिव पुराण (Shiv Puran) में काशी क्षेत्र की महत्वपूर्ण कथा है, जो काशी के महत्व को बताती है। एक बार देवी पार्वती ने संसार के कल्याण की इच्छा से शिव से दो अविमुक्तों – काशी और विश्वेश्वर – की महानता के बारे में बहुत खुशी से पूछा।

शिव जी ने उत्तर दिया – वाराणसी मेरा रहस्यमय तीर्थ है। यह हर प्रकार से लोगों के लिए मुक्ति का कारण है। इस पवित्र केंद्र में, सिद्धों ने हमेशा मेरे पवित्र संस्कारों को अपनाया है। वे भिन्न-भिन्न लिंगीय छवियाँ धारण करते हैं।

वे मेरी दुनिया को पाने के लिए तरसते हैं। जिन लोगों ने खुद पर विजय प्राप्त कर ली है और अपनी इंद्रियों को नियंत्रित कर लिया है, वे वेदों में बताए गए महान योग का पालन करते हैं, जिससे सांसारिक सुख और मोक्ष मिलता है।

दो अन्य मुक्ति के पात्र हैं – वह जो मेरा भक्त है और वह जो पूर्ण ज्ञान रखता है। वे पवित्र स्थानों पर निर्भर नहीं हैं। वे इस संबंध में समान हैं कि क्या निर्धारित है और क्या वर्जित है।

उन्हें मुक्त आत्माओं के रूप में जाना जाना चाहिए, चाहे उनकी मृत्यु कहीं भी हो। उन्हें मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होती है।

शिव पुराण (Shiv Puran) में शिव जी के अद्भुत रूप

शिव पुराण (Shiv Puran) में भगवान शिव के अद्भुत रूपों का वर्णन किया गया है, जिनमें भैरव, उग्र, आदि शामिल हैं।

शिव पुराण (Shiv Puran) का महत्व

शिव पुराण (Shiv Puran) का अध्ययन करने से हम भगवान शिव के महत्वपूर्ण रूप, उपदेश, और कथाओं का अध्ययन कर सकते हैं।

यह पुराण हमारे धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन को समृद्धि और आनंद से भर सकता है और हमें सही मार्ग पर चलने के लिए मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है।

इस महत्वपूर्ण लेख को भी पढ़ें – लक्ष्मी माता की कृपा कैसे प्राप्त करें?

निष्कर्ष

शिव पुराण (Shiv Puran) हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है जो भगवान शिव के महत्वपूर्ण उपदेशों, लीलाओं और कथाओं का वर्णन करता है।

इस पुराण को पढ़कर व्यक्ति अपने जीवन में धार्मिकता और आध्यात्मिकता का मार्ग पा सकते हैं और भगवान शिव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।

यह ग्रंथ हमारे संस्कृति और धर्म की महत्वपूर्ण धारा का हिस्सा है और हमारे जीवन को सद्गुणपूर्ण बनाने में मदद करता है।

जय शिव शम्भू !

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