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देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी व्रत कथा (Devutthana/Prabodhini Ekadashi Vrat Katha In Hindi)

देवोत्थान एकादशी व्रत कथा (Devutthana Ekadashi Vrat Katha) प्रबोधिनी एकादशी व्रत कथा (Prabodhini Ekadashi Vrat Katha)

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देवोत्थान एकादशी व्रत कथा (Devutthana Ekadashi Vrat Katha) | प्रबोधिनी एकादशी व्रत कथा (Prabodhini Ekadashi Vrat Katha)

देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी (Devutthana/Prabodhini Ekadashi) हिंदू धर्म में एक पवित्र दिन माना जाता है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार यह दिन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन होता है।

ऐसी मान्यता है कि देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी के दिन व्रत का पालन करने से मनुष्य के बड़े से बड़े पाप नष्ट होते हैं और व्यक्ति को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी व्रत (Devutthana/Prabodhini Ekadashi Vrat) और देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी व्रत कथा (Devutthana/Prabodhini Ekadashi Vrat Katha) के पुण्य प्रभाव से भक्त पर भगवान श्री विष्णु जी की कृपा होती है।

पद्मपुराण में भी इस महान दिन का वर्णन किया गया है। पद्मपुराण के उत्तरखंड के अनुसार देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी व्रत करने से मनुष्य को सहस्त्र (1000) अश्वमेध यज्ञों और सौ (100) राजसूय यज्ञों के फल के समान फल मिलता है।

हिन्दू धर्म में चतुर्मास का आरम्भ देवशयनी एकादशी के दिन से होता है। मान्यता के अनुसार देवशयनी एकादशी के दिन भगवान श्री विष्णु जी क्षीर सागर में विद्मान होकर योग निद्रा में जाते हैं।

देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान श्री विष्णु जी योग निद्रा से उठते हैं और यही समय चातुर्मास की समाप्ति का भी समय है। इसलिए देवोत्थान एकादशी के नाम से ही स्पष्ट होता है कि इसका नाम यह क्यों पड़ा।

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देवशयनी एकादशी व्रत कथा

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इस लेख में हम देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी व्रत (Devutthana/Prabodhini Ekadashi Vrat), देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी व्रत विधि (Devutthana/Prabodhini Ekadashi Vrat Vidhi) और देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी व्रत कथा (Devutthana/Prabodhini Ekadashi Vrat Katha) के बारे में जानेंगे।

देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी व्रत और देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी व्रत कथा कब करनी चाहिए? (When to do Devutthana/Prabodhini Ekadashi Vrat and Devutthana/Prabodhini Ekadashi Vrat Katha?)

देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी व्रत (Devutthana/Prabodhini Ekadashi Vrat) और देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी व्रत कथा (Devutthana/Prabodhini Ekadashi Vrat Katha) ईश्वर से सुख प्राप्ति, पापों का नाश करने तथा भगवत कृपा प्राप्त करने और आध्यात्मिक सफाई के बारे में है।

यह दिन भगवान विष्णु जी को समर्पित है। हिंदू मान्यता के अनुसार एक चंद्र चरण के दो अलग-अलग चरण होते हैं – कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। प्रत्येक चरण (पक्ष) 14 दिनों का होता है। इन दोनों पक्षों को ही हिन्दू कैलेंडर माह के पक्ष भी कहा जाता है।

दोनों पक्षों के ग्यारहवें दिन को एकादशी कहा जाता है। इसलिए एक माह में दो एकादशी के दिन आते हैं। इस दिन रखे जाने वाले व्रत या कर्मकांड को एकादशी व्रत कहा जाता है और दुनिया भर में लाखों हिंदुओं द्वारा मनाया जाता है।

कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन ही देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी व्रत (Devutthana/Prabodhini Ekadashi Vrat) तथा देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी व्रत कथा (Devutthana/Prabodhini Ekadashi Vrat Katha) रखनी चाहिए।

देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी व्रत (Devutthana/Prabodhini Ekadashi Vrat) एक दिन पहले सूर्यास्त से शुरू होकर एकादशी के अगले दिन सूर्योदय के बाद तक रखा जाता है।

देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी व्रत कथा विधि (Devutthana/Prabodhini Ekadashi Vrat Katha Vidhi In Hindi)

देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी व्रत (Devutthana/Prabodhini Ekadashi Vrat) और देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी व्रत कथा (Devutthana/Prabodhini Ekadashi Vrat Katha) की पूजा विधि इस प्रकार है।

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
  • घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
  • भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें।
  • भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी अर्पित करें।
  • अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।
  • व्रत कथा का पाठ करें। (व्रत कथा इस लेख में निचे दी गयी है। कृपया कर के व्रत कथा वहां से पढ़ें।)
  • भगवान की आरती करें। (इस लेख के अंत में एकादशी आरती के लेख का लिंक दिया गया है। उस पर क्लिक कर के आप एकादशी आरती पढ़ सकते हैं।)
  • भगवान को भोग लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं।
  • इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें।
  • इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।
  • अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत खोलें और सात्विक भोजन करें। बहुत से लोग व्रत के दौरान फलाहार ग्रहण करते हैं और कुछ लोग कुछ भी खाना ग्रहण नहीं करते। यहाँ तक की पानी भी ग्रहण नहीं करते। परन्तु आप व्रत के दौरान फलाहार ग्रहण कर सकते हैं।
इस महत्वपूर्ण लेख को भी पढ़ें - 
जया एकादशी (Jaya Ekadashi) के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी अपरा एकादशी व्रत कथा (Apara Ekadashi Vrat Katha In Hindi)

देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी व्रत और देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी व्रत कथा के लाभ (Benefits of Devutthana/Prabodhini Ekadashi Vrat and Devutthana/Prabodhini Ekadashi Vrat Katha)

देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी व्रत (Devutthana/Prabodhini Ekadashi Vrat) और देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी व्रत कथा (Devutthana/Prabodhini Ekadashi Vrat Katha) का लाभ उन लोगों के लिए है जो भगवान विष्णु की आस्था और पूजा करते हैं।

इसे हिंदू धर्म में सबसे फलदायी व्रतों में से एक माना जाता है। एकादशी व्रत के लाभ आपको शांति, सद्भाव और समृद्धि ला सकते हैं।

इस पवित्र हिंदू अनुष्ठान के भक्त, मन की शांति के साथ अपने द्वारा किये गए पापों को भस्म करते हैं और श्री विष्णु जी की कृपा प्राप्त करते हैं।

देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी व्रत (Devutthana/Prabodhini Ekadashi Vrat) और देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी व्रत कथा (Devutthana/Prabodhini Ekadashi Vrat Katha) को ईश्वर से अपने द्वारा किये गए बुरे कर्मों से उत्पन्न हुए पापों के नाश करने के लिए अति योग्य माना जाता है।

जो मनुष्य इस महत्त्वपूर्ण देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी व्रत कथा (Devutthana/Prabodhini Ekadashi Vrat Katha) को पढ़ता या सुनता है उसे अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी व्रत कथा (Devutthana/Prabodhini Ekadashi Vrat Katha In Hindi)

प्राचीन समय की बात है। राजा एकादशी के दिन व्रत का पालन करता था। परन्तु वह मन में शुद्ध भाव के साथ व्रत नहीं करता था। राजा अपने राज्य में प्रजा के सभी लोगों को एकादशी के दिन व्रत रखने के लिए बाध्य करता था।

प्रजा के लोगों के साथ साथ पशुओं तक को एकादशी के दिन अन्न खाने को नहीं दिया जाता था।

एक दिन किसी दूसरे राज्य से एक व्यक्ति राजा के पास आया और आकर बोला – “हे महाराज! मुझ पर कृपा करके मुझ अभागे को अपने यहाँ नौकरी पर रख लीजिये।”

राजा ने उसकी बात सुन कर उसके सामने एक शर्त रखी और कहा – “ठीक है! तुम्हें रख लेंगे परन्तु तुम्हें एकादशी के दिन व्रत करना पड़ेगा जैसे कि हमारे राज्य की प्रजा करती है।”

उस व्यक्ति ने राजा की बात सुन कर उस समय तो हाँ कर ली, परन्तु एकादशी के दिन जब उसे फलाहार प्रदान किया गया तो वह राजा के सामने जाकर गिड़गिड़ाने लगा।

वह व्यक्ति राजा से बोला – “हे महाराज! इस फलाहार से मेरा पेट नहीं भरेगा। अगर मैंने अन्न नहीं ग्रहण किया तो मैं भूखा ही मर जाऊंगा। कृपा कर के मुझे अन्न दे दीजिये।”

उसके ऐसा करने पर राजा ने उसे वह शर्त याद दिलाई। परन्तु वह व्यक्ति भूख से इतना पीड़ित था कि अन्न छोड़ने को तैयार ही नहीं हुआ।

तब राजा ने दया भाव से उसे आटा, दाल तथा चावल आदि दे दिया। वह रोज़ की तरह नदी के किनारे पहुँच कर स्नान करने के बाद भोजन पकाने लगा।

जब उसने भोजन बना लिया तो वह भगवान को बुलाने लगा – “हे प्रभु, आओ! भोजन तैयार है। आकर भोजन ग्रहण करो।”

उसके दया भाव से बुलाने पर पीताम्बर धारण किए भगवान श्री विष्णु जी चतुर्भुज रूप में प्रकट हुए तथा प्रेम से उसके साथ भोजन करने लगे। भोजन करके भगवान श्री विष्णु जी अंतर्ध्यान हो गए। वह व्यक्ति भी अपने काम पर चला गया।

पंद्रह दिन बाद जब अगली एकादशी का दिन आया तो वह राजा से बोला – “हे महाराज! मुझे दोगुना अन्न दीजिए। उस दिन तो मैं भूखा ही रह गया था।”

राजा ने उस से कारण पूछा कि तुम कैसे भूखे रह गए जब तुम्हें एक व्यक्ति का अन्न दिया था। तो उसने उत्तर दिया कि मेरे साथ भगवान श्री हरी जी भी खाना खाते हैं। इसीलिए दोनों के लिए यह अन्न पर्याप्त नहीं होता।

उस व्यक्ति की बात सुनकर राजा बड़ा चकित हुआ। राजा उस व्यक्ति से बोला – “मैं नहीं मानता कि भगवान श्री हरी साक्षात् तुम्हारे साथ खाना खाते हैं। मैं तो इतना व्रत रखता हूँ और पूजा करता हूँ, परन्तु भगवान श्री हरी ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए तो तुम तो उनके लिए व्रत भी नहीं करते हो।”

राजा की बात सुनकर वह व्यक्ति बोला – “हे महाराज! यदि आपको विश्वास नहीं हो रहा तो मेरे साथ चलकर देख लीजिये।”

राजा उस व्यक्ति के साथ यह देखने गया और एक पेड़ के पीछे छिप कर बैठ गया। उस व्यक्ति ने प्रतिदिन की तरह भोजन बनाया और भगवान श्री हरी विष्णु जी को खाने के लिए पुकारा। परंतु भगवान नहीं आए।

अंत में उस व्यक्ति ने कहा – “हे भगवान! यदि आप नहीं आएंगे तो मैं नदी में कूदकर अपने प्राण त्याग दूंगा।”

लेकिन फिर भी भगवान प्रकट नहीं हुए। तब वह व्यक्ति प्राण त्यागने के लिए नदी की तरफ बढ़ा। प्राण त्यागने के लिए उसका दृढ़ निश्चय जान कर भगवान शीघ्र ही प्रकट हुए और उसे प्राण त्यागने से रोक लिया।

फिर भगवान श्री विष्णु जी उसके साथ बैठकर भोजन करने लगे। अन्न ग्रहण कर के भगवान उसे अपने विमान में बिठाकर अपने धाम में ले गए।

जब राजा ने यह देखा तो उसको बात समझ आ गयी कि व्रत करने से तब तक कोई लाभ नहीं होता, जब तक कि मनुष्य शुद्ध मन से व्रत का पालन न करे। इससे राजा को महान ज्ञान मिला।

राजा ने आने वाले देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी व्रत का शुद्ध मन से पालन किया तथा उस दिन देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी व्रत कथा (Devutthana/Prabodhini Ekadashi Vrat Katha) का भी मन से पाठ किया। अब राजा दूसरों को ज़बरदस्ती व्रत का पालन करने के लिए बाध्य भी नहीं करता था।

व्रत तथा देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी व्रत कथा (Devutthana/Prabodhini Ekadashi Vrat Katha) के पुण्य प्रभाव से राजा को मृत्यु के बाद स्वर्ग की प्राप्ति हुई।

इस कथा से हमें देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी व्रत (Devutthana/Prabodhini Ekadashi Vrat) और देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी व्रत कथा (Devutthana/Prabodhini Ekadashi Vrat Katha) का महत्त्व पता चलता है।

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