निर्जला एकादशी व्रत कथा (Nirjala Ekadashi Vrat Katha In Hindi)
निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) हिंदू धर्म में एक पवित्र दिन माना जाता है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार यह दिन ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन होता है।
निर्जला एकादशी का वर्णन मार्कण्डेय पुराण और विष्णु पुराण में किया गया है। निर्जला एकादशी व्रत (Nirjala Ekadashi Vrat) का पालन करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे भगवान श्री विष्णु जी की कृपा प्राप्त होती है।
हिन्दू धर्म में यह एक महत्वपूर्ण दिन है और ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत का विधि-विधान अनुसार पालन करता है उसे सभी 24 एकादशियों से प्राप्त होने वाले पुण्य के समान पुण्य की प्राप्ति होती है।
“निर्जला” का अर्थ है “बिना जल के“। तो जिस प्रकार इस एकादशी का नाम है उसी प्रकार इसका पालन भी करना पड़ता है। इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति को बिना जल तथा अन्न के व्रत को पूर्ण करना पड़ता है।
निर्जला एकादशी को पाण्डव एकादशी और भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। आप सोच रहे होंगे कि ऐसा क्यों कहा जाता है? चिंतित मत होइए। इस सन्दर्भ में कथा इस लेख में निचे दी गयी है।
ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति निर्जला एकादशी व्रत का पालन करता है, उसे मृत्यु के बाद यमराज के दूत नहीं बल्कि भगवान श्री विष्णु जी के दूत वैकुंठ लोक में ले जाते हैं।
निर्जला एकादशी व्रत (Nirjala Ekadashi Vrat) और निर्जला एकादशी व्रत कथा (Nirjala Ekadashi Vrat Katha) के पुण्य प्रभाव से भक्त भगवान श्री विष्णु जी का अति प्रिय हो जाता है और भगवान स्वयं उसके द्वारा किये गए पापों की उसे क्षमा प्रदान करते हैं।
निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) के दिन व्रत रखने से मनुष्य पर भगवान श्री विष्णु जी की कृपा होती है और उस मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। अंत में मनुष्य को स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है।
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इस लेख में हम निर्जला एकादशी व्रत (Nirjala Ekadashi Vrat), निर्जला एकादशी व्रत विधि (Nirjala Ekadashi Vrat Vidhi) और निर्जला एकादशी व्रत कथा (Nirjala Ekadashi Vrat Katha) के बारे में जानेंगे।
निर्जला एकादशी व्रत और निर्जला एकादशी व्रत कथा कब करनी चाहिए? (When to do Nirjala Ekadashi Vrat and Nirjala Ekadashi Vrat Katha?)
निर्जला एकादशी व्रत (Nirjala Ekadashi Vrat) और निर्जला एकादशी व्रत कथा (Nirjala Ekadashi Vrat Katha) ईश्वर से सुख प्राप्ति, सभी तरह के पापों से मुक्ति, श्री विष्णु कृपा प्राप्ति, स्वर्ग प्राप्ति और आध्यात्मिक सफाई के बारे में है।
यह दिन भगवान विष्णु जी को समर्पित है। हिंदू मान्यता के अनुसार एक चंद्र चरण के दो अलग-अलग चरण होते हैं – कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। प्रत्येक चरण (पक्ष) 14 दिनों का होता है। इन दोनों पक्षों को ही हिन्दू कैलेंडर माह के पक्ष भी कहा जाता है।
दोनों पक्षों के ग्यारहवें दिन को एकादशी कहा जाता है। इसलिए एक माह में दो एकादशी के दिन आते हैं। इस दिन रखे जाने वाले व्रत या कर्मकांड को एकादशी व्रत कहा जाता है और दुनिया भर में लाखों हिंदुओं द्वारा मनाया जाता है।
ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। इस दिन ही निर्जला एकादशी व्रत (Nirjala Ekadashi Vrat) तथा निर्जला एकादशी व्रत कथा (Nirjala Ekadashi Vrat Katha) रखनी चाहिए।
निर्जला एकादशी व्रत (Nirjala Ekadashi Vrat) एक दिन पहले सूर्यास्त से शुरू होकर एकादशी के अगले दिन सूर्योदय के बाद तक रखा जाता है।
निर्जला एकादशी व्रत कथा विधि (Nirjala Ekadashi Vrat Katha Vidhi In Hindi)
निर्जला एकादशी व्रत (Nirjala Ekadashi Vrat) और निर्जला एकादशी व्रत कथा (Nirjala Ekadashi Vrat Katha) की पूजा विधि इस प्रकार है।
- सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
- घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
- भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें।
- भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी अर्पित करें।
- अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।
- व्रत कथा का पाठ करें। (व्रत कथा इस लेख में निचे दी गयी है। कृपया कर के व्रत कथा वहां से पढ़ें।)
- भगवान की आरती करें। (इस लेख के अंत में एकादशी आरती के लेख का लिंक दिया गया है। उस पर क्लिक कर के आप एकादशी आरती पढ़ सकते हैं।)
- भगवान को भोग लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं।
- इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें।
- इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।
- इस दिन जल (पानी) का सेवन वर्जित है और व्रत करने वाले को इस दिन पानी नहीं पीना चाहिए।
- अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत खोलें और सात्विक भोजन करें। बहुत से लोग व्रत के दौरान फलाहार ग्रहण करते हैं और कुछ लोग कुछ भी खाना ग्रहण नहीं करते। यहाँ तक की पानी भी ग्रहण नहीं करते। परन्तु आप व्रत के दौरान फलाहार ग्रहण कर सकते हैं।
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निर्जला एकादशी व्रत और निर्जला एकादशी व्रत कथा के लाभ (Benefits of Nirjala Ekadashi Vrat and Nirjala Ekadashi Vrat Katha)
निर्जला एकादशी व्रत (Nirjala Ekadashi Vrat) और निर्जला एकादशी व्रत कथा (Nirjala Ekadashi Vrat Katha) का लाभ उन लोगों के लिए है जो भगवान विष्णु की आस्था और पूजा करते हैं।
इसे हिंदू धर्म में सबसे फलदायी व्रतों में से एक माना जाता है। एकादशी व्रत के लाभ आपको शांति, सद्भाव और समृद्धि ला सकते हैं।
इस पवित्र हिंदू अनुष्ठान के भक्त, मन की शांति के साथ सभी तरह के पापों से मुक्ति, स्वर्ग प्राप्ति और श्री विष्णु कृपा प्राप्त करते हैं।
निर्जला एकादशी व्रत (Nirjala Ekadashi Vrat) और निर्जला एकादशी व्रत कथा (Nirjala Ekadashi Vrat Katha) को मनुष्य द्वारा भगवान श्री विष्णु जी की अपार कृपा और अपने किये गए पापों की क्षमा याचना के लिए अति योग्य माना जाता है।
जो मनुष्य इस महत्त्वपूर्ण निर्जला एकादशी व्रत कथा (Nirjala Ekadashi Vrat Katha) को पढ़ता या सुनता है उसे अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
निर्जला एकादशी व्रत कथा (Nirjala Ekadashi Vrat Katha In Hindi)
महाभारत काल की बात है। एक दिन भीमसेन और महर्षि व्यास में वार्तालाप हो रहा था। इसी वार्तालाप के बीच भीमसेन ने महर्षि व्यास से एक प्रश्न किया।
भीमसेन ने महर्षि से कहा – “हे ऋषिवर! मेरे परिवार के सभी सदस्य सभी एकादशी के दिन व्रत का पालन करते हैं और मुझे भी ऐसा करने को कहते हैं। परन्तु मैं सारा दिन भूखा नहीं रह सकता। मैं पूजा पाठ कर सकता हूँ परन्तु मेरे पेट में भूख अग्नि की भांति जलती रहती है जो मुझे कुछ समय तक भी बिना भोजन किए नहीं रहने देती।”
इस बात पर महर्षि व्यास कहते हैं – “हे भीम! तुमने सही सुना है कि एकादशी के दिन अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। सभी एकादशी के दिन व्रत का पालन करने से मनुष्य को पुण्य प्राप्त होता है और स्वर्ग की प्राप्ती होती है।”
भीमसेन ने महर्षि से कहा – “हे ऋषिवर! जैसे कि मैंने आपसे पहले ही कहा है कि मैं भोजन किए बिना ज़्यादा समय तक नहीं रह सकता हूँ। मैं पूरे वर्ष एकादशी के व्रत कर पाने में असमर्थ हूँ। मुझ पर कृपा कर के कोई ऐसा समाधान बताइए जिस से मुझे भगवत कृपा और स्वर्ग की प्राप्ति हो सके। मैं पूरे वर्ष में किसी एक एकादशी का व्रत करने का हर संभव प्रयत्न करूँगा।”
इस पर महर्षि ने कहा – “हे वत्स! अगर ऐसी बात है तो मैं तुम्हे उस एकादशी के बारे में बताऊंगा जिसके व्रत का पालन कर के तुम सभी एकादशियों से प्राप्त होने वाले पुण्य के समान पुण्य प्राप्त कर सकोगे।”
ऐसा कहते हुए महर्षि व्यास ने भीमसेन को निर्जला एकादशी के व्रत का महत्त्व बतलाया। उन्होंने कहा कि ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है।
इस दिन बिना जल ग्रहण किए व्रत का विधि अनुसार पालन करना चाहिए। निर्जला एकादशी के व्रत का पालन करते समय यदि स्नान और आचमन करते समय मुँह में पानी चला जाये तो इस बात का कोई दोष नहीं लगता है।
किन्तु एक बात ध्यान देने योग्य है कि आचमन में 6 माशे पानी से ज़्यादा पानी नहीं होना चाहिये। अगर आचमन में 6 माशे से ज़्यादा पानी है तो वह पानी शराब (मद्यपान) पीने के समान है।
इस दिन भी बाकी एकादशियों की तरह भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिये। सूर्योदय से सूर्यास्त के समय तक यदि मनुष्य जलपान न करे तो उसे सभी एकादशियों के फल की प्राप्ति होती है।
द्वादशी के दिन सूर्य उदय होने से पहले उठकर ब्राह्मण को दान दक्षिणा देनी चाहिए तथा भोजन करवाना चाहिए। सूर्योदय के बाद ही व्रत का पारण करना चाहिए।
इस दिन भगवान श्री विष्णु जी की पूजा अर्चना करने के बाद निर्जला एकादशी व्रत कथा (Nirjala Ekadashi Vrat Katha) का पाठ भी करना चाहिए।
आगे महर्षि व्यास कहते हैं कि भगवान ने स्वयं मुझे इस दिन का महत्त्व बतलाया था और कहा था कि इस एकादशी का पुण्य सभी तीर्थों का भ्रमण करने और दान-दक्षिणा करने के समान है।
इस एकादशी के दिन निर्जला रहने से व्यक्ति को सभी पापों से छुटकारा मिल जाता है। जो व्यक्ति निर्जला एकादशी के व्रत का पालन करते हैं, उन्हें मृत्यु के समय भयानक यमदूत नहीं दिखाई देते।
उन्हें भगवान श्री विष्णु जी के दूत स्वयं अपने साथ स्वर्ग ले जाते हैं। तो इस प्रकार महर्षि व्यास ने भीमसेन को इस महान दिन की महिमा का वर्णन किया। इसलिए इस दिन को भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं।
इस कथा से हमें निर्जला एकादशी व्रत (Nirjala Ekadashi Vrat) और निर्जला एकादशी व्रत कथा (Nirjala Ekadashi Vrat Katha) का महत्त्व पता चलता है।
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