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जया एकादशी व्रत कथा (Jaya Ekadashi Vrat Katha In Hindi)

जया एकादशी व्रत कथा (Jaya Ekadashi Vrat Katha In Hindi)

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जया एकादशी व्रत कथा (Jaya Ekadashi Vrat Katha In Hindi)

जया एकादशी (Jaya Ekadashi) हिंदू धर्म में एक पवित्र दिन माना जाता है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार यह दिन माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन होता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह दिन जनवरी या फरवरी के महीने में आता है।

जया एकादशी व्रत (Jaya Ekadashi Vrat) करने से मनुष्य को निम्न कोटि की योनि में जन्म लेने से छुटकारा प्राप्त होता है। जो व्यक्ति इस दिन व्रत का पालन करता है उसे नीच योनिओं जैसे कि भूत,प्रेत और पिशाच आदि में जन्म लेने से मुक्ति मिल जाती है।

हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग इस दिन उपवास रखते हैं और अच्छे कर्मों, बुद्धि तथा विवेक के लिए भगवान श्री विष्णु जी की पूजा करते हैं। यह दिन विशेष रूप से विष्णु जी के भक्त वैष्णव संप्रदाय के लोगों द्वारा मनाया जाता है।

जया एकादशी के दिन उपवास रख के मनुष्य ईश्वर से मोक्ष प्राप्ति कि कामना करता है।

अगर आप वर्ष की सभी एकादशी व्रतों की विधि तथा व्रत कथा पढ़ना चाहते हैं तो निचे दिए गए लिंक पर क्लिक कीजिये। हमने सभी एकादशी व्रत विधि तथा कथाओं के ऊपर लेख विस्तार में लिखे हुए हैं।

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इस लेख में हम जया एकादशी व्रत (Jaya Ekadashi Vrat), जया एकादशी व्रत विधि (Jaya Ekadashi Vrat Vidhi) और जया एकादशी व्रत कथा (Jaya Ekadashi Vrat Katha) के बारे में जानेंगे।

जया एकादशी व्रत और जया एकादशी व्रत कथा कब करनी चाहिए? (When to do Jaya Ekadashi Vrat and Jaya Ekadashi Vrat Katha?)

जया एकादशी व्रत (Jaya Ekadashi Vrat) और जया एकादशी व्रत कथा (Jaya Ekadashi Vrat Katha) ईश्वर से सुख प्राप्ति, मोक्ष प्राप्ति और आध्यात्मिक सफाई के बारे में है।

यह दिन भगवान विष्णु जी को समर्पित है। हिंदू मान्यता के अनुसार एक चंद्र चरण के दो अलग-अलग चरण होते हैं – कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। प्रत्येक चरण (पक्ष) 14 दिनों का होता है। इन दोनों पक्षों को ही हिन्दू कैलेंडर माह के पक्ष भी कहा जाता है।

दोनों पक्षों के ग्यारहवें दिन को एकादशी कहा जाता है। इसलिए एक माह में दो एकादशी के दिन आते हैं। इस दिन रखे जाने वाले व्रत या कर्मकांड को एकादशी व्रत कहा जाता है और दुनिया भर में लाखों हिंदुओं द्वारा मनाया जाता है।

माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहा जाता है। इस दिन ही जया एकादशी व्रत (Jaya Ekadashi Vrat) तथा जया एकादशी व्रत कथा (Jaya Ekadashi Vrat Katha) रखनी चाहिए।

जया एकादशी व्रत एक दिन पहले सूर्यास्त से शुरू होकर एकादशी के अगले दिन सूर्योदय के बाद तक रखा जाता है।

जया एकादशी व्रत कथा विधि (Jaya Ekadashi Vrat Katha Vidhi In Hindi)

जया एकादशी व्रत (Jaya Ekadashi Vrat) और जया एकादशी व्रत कथा (Jaya Ekadashi Vrat Katha) की पूजा विधि इस प्रकार है।

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
  • घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
  • भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें।
  • भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी अर्पित करें।
  • अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।
  • व्रत कथा का पाठ करें। (व्रत कथा इस लेख में निचे दी गयी है। कृपया कर के व्रत कथा वहां से पढ़ें।)
  • भगवान की आरती करें। (इस लेख के अंत में एकादशी आरती के लेख का लिंक दिया गया है। उस पर क्लिक कर के आप एकादशी आरती पढ़ सकते हैं।)
  • भगवान को भोग लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं।
  • इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें।
  • इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।
  • अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत खोलें और सात्विक भोजन करें। बहुत से लोग व्रत के दौरान फलाहार ग्रहण करते हैं और कुछ लोग कुछ भी खाना ग्रहण नहीं करते। यहाँ तक की पानी भी ग्रहण नहीं करते। परन्तु आप व्रत के दौरान फलाहार ग्रहण कर सकते हैं।
इस महत्वपूर्ण लेख को भी पढ़ें - जया एकादशी (Jaya Ekadashi) के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Pausha Putrada Ekadashi Vrat Katha In Hindi)

जया एकादशी व्रत और जया एकादशी व्रत कथा के लाभ (Benefits of Jaya Ekadashi Vrat and Jaya Ekadashi Vrat Katha)

जया एकादशी व्रत (Jaya Ekadashi Vrat) और जया एकादशी व्रत कथा (Jaya Ekadashi Vrat Katha) का लाभ उन लोगों के लिए है जो भगवान विष्णु की आस्था और पूजा करते हैं।

इसे हिंदू धर्म में सबसे फलदायी व्रतों में से एक माना जाता है। एकादशी व्रत के लाभ आपको शांति, सद्भाव और समृद्धि ला सकते हैं। इस पवित्र हिंदू अनुष्ठान के भक्त, मन की शांति और समृद्धि प्राप्त करते हैं।

जया एकादशी व्रत (Jaya Ekadashi Vrat) और जया एकादशी व्रत कथा (Jaya Ekadashi Vrat Katha) सुख और समृद्धि के साथ साथ निम्न कोटि की योनियों जैसे कि भूत, प्रेत और पिशाच में जन्म लेने से मुक्ति के लिए अति योग्य माना जाता है।

जो मनुष्य इस महत्त्वपूर्ण जया एकादशी व्रत कथा (Jaya Ekadashi Vrat Katha) को पढ़ता या सुनता है उसे अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

जया एकादशी व्रत कथा (Jaya Ekadashi Vrat Katha In Hindi)

एक बार देवराज इंद्र की सभा में उत्सव मनाया जा रहा था। इस उत्सव सभा में गंधर्वों का गायन चल रहा था और गंधर्व कन्याओं का नृत्य हो रहा था।

इस बिच माल्यवान नामक गन्धर्व का गायन शुरू हुआ और साथ में पुष्पवती नामक गन्धर्व कन्या का नृत्य शुरू हुआ। जैसे ही पुष्पवती की नज़र माल्यवान पर पड़ती है तो पुष्पवती माल्यवान की ओर आकर्षित हो जाती है।

इस वजह से पुष्पवती सभा की मर्यादा को भूलकर माल्यवान को आकर्षित करने के लिए नृत्य करने लगती है। पुष्पवती के इस प्रकार नृत्य करने से माल्यवान पुष्पवती की ओर आकर्षित हो जाता है और इसी कारण से वह सुर-ताल से भटक जाता है।

यह देख कर देवराज इंद्र माल्यवान और पुष्पवती को सभा की मर्यादा भंग करने के लिए श्राप दे देते हैं। देवराज इंद्र दोनों को स्वर्ग से वंचित होकर मृत्यु लोक (पृथ्वी) में पिशाच योनि में जीवन व्यतीत करने का श्राप देते हैं।

जब दोनों पृथ्वी लोक में पिशाच योनि में जन्म लेते हैं तो वे दोनों हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष के ऊपर रहना शुरू करते हैं। दोनों का जीवन पिशाच योनि में अत्यंत कष्टदायी था। दोनों इस बात से बहुत दुखी थे और दुःख में ही जीवन व्यतीत कर रहे थे।

ऐसे ही समय बीतता गया और एक दिन माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन आया। अपनी ऐसी दयनीय स्थिति से दुखी होकर दोनों इस दिन फलाहार ही करते हैं।

रात्रि के समय कड़ाके की ठण्ड पड़ती है और इस वजह से दोनों पूरी रात जगे रहते हैं। सुबह तक ठण्ड में ठिठुरने की वजह से दोनों की मृत्यु हो जाती है।

इस कारण अनजाने में दोनों का जया एकादशी (Jaya Ekadashi) का व्रत पूर्ण हो जाता है और दोनों की पिशाच योनि से मुक्ति हो जाती है। इसके बाद दोनों फिर से स्वर्ग में वास करने लगते हैं।

दोनों को स्वर्ग में देख कर देवराज इंद्र ने हैरान होकर दोनों से पिशाच योनि से मुक्ति मिलने का कारण पूछा। इस पर दोनों ने साड़ी बात इंद्रदेव को बताई और कहा कि यह कृपा भगवान श्री विष्णु जी की भक्ति और जया एकादशी का प्रभाव है। यह बात सुन कर देवराज इंद्र बहुत प्रसन्न हुए और दोनों को स्वर्गलोक में ख़ुशी-ख़ुशी रहने का आशीर्वाद दिया।

इस कथा से यह ज्ञान मिलता है कि जया एकादशी (Jaya Ekadashi) का व्रत रखने से आपका जीवन अत्यंत पुण्यवान हो जाता है।

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