Gayatri Chalisa in Hindi (गायत्री चालीसा) Lyrics
देवी गायत्री को दिव्य सार्वभौमिक मां और वेदों (वेदमाता) की मां के रूप में भी जाना जाता है। उन्हें सभी चीजों से निकलने वाली दिव्य ऊर्जा माना जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान ब्रह्मा को एक यज्ञ करने की आवश्यकता थी, जिसमें उनकी पत्नी, देवी सरस्वती की उपस्थिति की आवश्यकता थी, जो उपलब्ध नहीं थी। भगवान ब्रह्मा ने पुजारी से एक ऐसी महिला को खोजने के लिए कहा जो देवी सरस्वती की जगह ले सके ताकि यज्ञ आगे बढ़ सके। पुजारी को एक उपयुक्त महिला मिली, उसका नाम गायत्री रखा और उसका विवाह भगवान ब्रह्मा से कर दिया। यही कारण है कि देवी गायत्री को अक्सर देवी सरस्वती की अभिव्यक्ति के रूप में जाना जाता है।

देवी गायत्री को कमल के फूल पर बैठे पांच चेहरों के साथ चित्रित किया गया है। उसके पांच चेहरे पांच प्राण और ब्रह्मांड के पांच तत्वों-पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल और वायु के प्रतीक हैं। उसके दस हाथ हैं और उसके हाथों में त्रिदेव- भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव के हथियार हैं।
देवी गायत्री की पूजा में सबसे प्रसिद्ध प्रार्थना गायत्री मंत्र है। लेकिन एक और प्रार्थना है जो देवी की पूजा करने का एक शक्तिशाली तरीका है – गायत्री चालीसा। यह देवी की स्तुति में चालीस पद की प्रार्थना है। कहा जाता है कि वेद व्यास ने इस चालीसा को सभी वेदों का सार कहा है।
Benefits of Gayatri Chalisa (गायत्री चालीसा के लाभ)
गायत्री को वेदमाता के नाम से जाना जाता है। वे सभी वेदों की जननी हैं। गायत्री पाठ के लिए पूरी तरह से समर्पित व्यक्ति आत्म प्रगति के मार्ग में महान उपलब्धि हासिल करने में सक्षम है। गायत्री मनुष्य को सही ज्ञान की ओर प्रेरित करती है।
लोगों के बौद्धिक क्षेत्र पर जैसे ही गायत्री का दिव्य प्रकाश उदय होता है, बुरे विचारों का अँधेरा,
असत्य विश्वास, अपमानजनक दोष दूर होने लगते हैं।
गायत्री निस्संदेह और चमत्कारिक रूप से किसी भी व्यक्ति के मानसिक ढांचे को एक व्यवस्थित, धर्मी और संतुलित व्यक्तित्व में बदल देती है। एक अच्छी तरह से विकसित दिमाग विचारों को उस क्रिया की ओर ले जाता है जिससे आपको खुशी मिलती है। उसका काम उत्कृष्ट हो जाता है और उसके सुविचारित विचार खुशी, संतुष्टि और सद्भाव बिखेरते हैं।
Gayatri Chalisa Doha (गायत्री चालीसा दोहा)
हीं श्रीं, क्लीं, मेधा, प्रभा, जीवन ज्योति प्रचण्ड ।
शांति, क्रांति, जागृति, प्रगति, रचना शक्ति अखण्ड ॥
जगत जननि, मंगल करनि, गायत्री सुखधाम ।
प्रणवों सावित्री, स्वधा, स्वाहा पूरन काम ॥
Gayatri Chalisa Chaupai (गायत्री चालीसा चौपाई)
भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी ।
गायत्री नित कलिमल दहनी ॥१॥
अक्षर चौबिस परम पुनीता ।
इनमें बसें शास्त्र, श्रुति, गीता ॥
शाश्वत सतोगुणी सतरुपा ।
सत्य सनातन सुधा अनूपा ॥
हंसारुढ़ सितम्बर धारी ।
स्वर्णकांति शुचि गगन बिहारी ॥४॥
पुस्तक पुष्प कमंडलु माला ।
शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला ॥
ध्यान धरत पुलकित हिय होई ।
सुख उपजत, दुःख दुरमति खोई ॥
कामधेनु तुम सुर तरु छाया ।
निराकार की अदभुत माया ॥
तुम्हरी शरण गहै जो कोई ।
तरै सकल संकट सों सोई ॥८॥
सरस्वती लक्ष्मी तुम काली ।
दिपै तुम्हारी ज्योति निराली ॥
तुम्हरी महिमा पारन पावें ।
जो शारद शत मुख गुण गावें ॥
चार वेद की मातु पुनीता ।
तुम ब्रहमाणी गौरी सीता ॥
महामंत्र जितने जग माहीं ।
कोऊ गायत्री सम नाहीं ॥१२॥
सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै ।
आलस पाप अविघा नासै ॥
सृष्टि बीज जग जननि भवानी ।
काल रात्रि वरदा कल्यानी ॥
ब्रहमा विष्णु रुद्र सुर जेते ।
तुम सों पावें सुरता तेते ॥
तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे ।
जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे ॥१६॥
महिमा अपरम्पार तुम्हारी ।
जै जै जै त्रिपदा भय हारी ॥
पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना ।
तुम सम अधिक न जग में आना ॥
तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा ।
तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेषा ॥
जानत तुमहिं, तुमहिं है जाई ।
पारस परसि कुधातु सुहाई ॥२०॥
तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई ।
माता तुम सब ठौर समाई ॥
ग्रह नक्षत्र ब्रहमाण्ड घनेरे ।
सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे ॥
सकलसृष्टि की प्राण विधाता ।
पालक पोषक नाशक त्राता ॥
मातेश्वरी दया व्रत धारी ।
तुम सन तरे पतकी भारी ॥२४॥
जापर कृपा तुम्हारी होई ।
तापर कृपा करें सब कोई ॥
मंद बुद्घि ते बुधि बल पावें ।
रोगी रोग रहित है जावें ॥
दारिद मिटै कटै सब पीरा ।
नाशै दुःख हरै भव भीरा ॥
गृह कलेश चित चिंता भारी ।
नासै गायत्री भय हारी ॥२८ ॥
संतिति हीन सुसंतति पावें ।
सुख संपत्ति युत मोद मनावें ॥
भूत पिशाच सबै भय खावें ।
यम के दूत निकट नहिं आवें ॥
जो सधवा सुमिरें चित लाई ।
अछत सुहाग सदा सुखदाई ॥
घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी ।
विधवा रहें सत्य व्रत धारी ॥३२॥
जयति जयति जगदम्ब भवानी ।
तुम सम और दयालु न दानी ॥
जो सदगुरु सों दीक्षा पावें ।
सो साधन को सफल बनावें ॥
सुमिरन करें सुरुचि बड़भागी ।
लहैं मनोरथ गृही विरागी ॥
अष्ट सिद्घि नवनिधि की दाता ।
सब समर्थ गायत्री माता ॥३६॥
ऋषि, मुनि, यती, तपस्वी, जोगी ।
आरत, अर्थी, चिंतित, भोगी ॥
जो जो शरण तुम्हारी आवें ।
सो सो मन वांछित फल पावें ॥
बल, बुद्घि, विघा, शील स्वभाऊ ।
धन वैभव यश तेज उछाऊ ॥
सकल बढ़ें उपजे सुख नाना ।
जो यह पाठ करै धरि ध्याना ॥४०॥
Final Gayatri Chalisa Doha (अंतिम गायत्री चालीसा दोहा)
यह चालीसा भक्तियुत, पाठ करे जो कोय ।
तापर कृपा प्रसन्नता, गायत्री की होय ॥
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