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Ganesh Chaturthi Vrat Katha In Hindi (गणेश चतुर्थी व्रत कथा)

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Ganesh Chaturthi Vrat Katha In Hindi (गणेश चतुर्थी व्रत कथा)

हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती है। वह शिव और पार्वती के पहले पुत्र हैं, और बुद्धि (जिन्हें रिद्धि भी कहा जाता है) और सिद्धि के पति हैं। ‘गा’ बुद्धि (बुद्धि) का प्रतीक है और ‘ना’ विद्या (ज्ञान) का प्रतीक है। इस प्रकार गणेश को बुद्धि और ज्ञान का स्वामी माना जाता है। भगवान गणेश को चार भुजाओं वाले बड़े पेट वाले, पीले या लाल देवता के रूप में और एक दांत वाले हाथी के सिर, एक चूहे पर सवार के रूप में चित्रित किया गया है। उन्हें अक्सर बैठे हुए दर्शाया जाता है।

गणेश की लोकप्रियता भारत के बाहर भी व्यापक रूप से फैली हुई है। उनके कुछ भक्त गणेश को सर्वोच्च देवता के रूप में पहचानते हैं और उन्हें गणपति कहा जाता है।

इस लेख में हम Ganesh Chaturthi Vrat और Ganesh Chaturthi Vrat Katha (गणेश चतुर्थी व्रत कथा) के बारे में जानेंगे।

ऐसा कहा जाता है कि जहां गणेश अपने भक्तों को हमेशा भाग्य और ज्ञान का आशीर्वाद देते हैं, वहीं वे उन्हें इस दिन समृद्धि भी देते हैं। यह भी कहा जाता है कि इस व्रत को करने वाली लड़कियों को विवाह का सौभाग्य प्राप्त होता है। इसलिए इस दिन व्रत रखने की परंपरा है।

When to do Ganesh Chaturthi Vrat and Ganesh Chaturthi Vrat Katha (गणेश चतुर्थी व्रत और गणेश चतुर्थी व्रत कथा कब करनी चाहिए)?

गणेश चतुर्थी व्रत पखवाड़े (चांद्र मास का कोई पक्ष) के चौथे दिन पड़ता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर महीने में दो चतुर्थी आती हैं। कृष्ण पक्ष के दौरान पड़ने वाली एक को संकष्टी चतुर्थी के रूप में जाना जाता है, जबकि शुक्ल पक्ष के दौरान पड़ने वाली दूसरी को विनायक चतुर्थी के रूप में जाना जाता है। विनायक चतुर्थी को उपवास के दिन के रूप में मनाया जाता है।

व्रत के दिन Ganesh Chaturthi Vrat Katha (गणेश चतुर्थी व्रत कथा) भी करनी चाहिए।

यद्यपि एक वर्ष में बारह गणेश चतुर्थी होती हैं, इनमें से एक चतुर्थी को बहुत लोकप्रिय त्योहार के रूप में मनाया जाता है। अन्य सभी चतुर्थी उपवास के दिनों के रूप में मनाई जाती हैं।

Ganesh Chaturthi Vrat Katha In Hindi (गणेश चतुर्थी व्रत कथा)

Ganesh Chaturthi Vrat Katha Vidhi In Hindi (गणेश चतुर्थी व्रत कथा विधि)

गणेश चतुर्थी व्रत और Ganesh Chaturthi Vrat Katha (गणेश चतुर्थी व्रत कथा) विधि इस प्रकार है।

  • सबसे पहले सुबह जल्दी उठना है और फिर आपको अपना संकल्प करना चाहिए। साथ ही, मन को सकारात्मक बनाने के लिए आपको ध्यान का अभ्यास करना चाहिए।
  • आपका उपवास सुबह से शुरू होना चाहिए और पूजा विधि समाप्त होने के बाद समाप्त होना चाहिए। एक और बात का ध्यान रखें कि व्रत तोड़ने के बाद भी आपको किसी भी तरह के अनाज के सेवन से दूर रहना चाहिए।
  • इस अवधि के दौरान, भगवान गणेश की पूजा करने के लिए एक छोटी पूजा होती है। इसके अलावा, Ganesh Chaturthi Vrat Katha (गणेश चतुर्थी व्रत कथा) और आरती करें और सभी के जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए बप्पा के दिव्य आशीर्वाद का आह्वान करने के लिए प्रार्थना करें।
  • पूजा समाप्त होने के बाद, आपको अपना प्रसाद चंद्रमा को समर्पित करना चाहिए।
इस महत्वपूर्ण लेख को भी पढ़ें - Mangalvar Vrat Katha (मंगलवार व्रत कथा) In Hindi

Benefits of Ganesh Chaturthi Vrat and Ganesh Chaturthi Vrat Katha (गणेश चतुर्थी व्रत और गणेश चतुर्थी व्रत कथा के लाभ)

गणेश चतुर्थी व्रत और Ganesh Chaturthi Vrat Katha (गणेश चतुर्थी व्रत कथा) करने के निम्नलिखित लाभ हैं:

समृद्धि

हर कोई स्वस्थ और समृद्ध जीवन चाहता है। जब आप भगवान गणेश की पूजा करते हैं, तो आप सफलता प्राप्त करने की दिशा में काम करते हैं। आप पाएंगे कि अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के प्रति आपका दृढ़ संकल्प ऊंचा है।

शुभ भविष्य

भगवान गणेश भक्तों को अच्छे भाग्य और धन के साथ आशीर्वाद देने के लिए भी जाने जाते हैं। यदि आप समर्पित रूप से भगवान गणेश की पूजा करेंगे, तो आप निश्चित रूप से भाग्य प्राप्त करेंगे, और कभी भी खाली हाथ नहीं लौटेंगे। आपके लिए अपने जीवन में प्रचुर मात्रा में धन और शक्ति की दिशा में काम करना आसान हो जाएगा।

बुद्धि

भगवान गणेश का हाथी सिर ज्ञान का प्रतीक है। इसलिए, यदि आप भगवान गणेश की पूजा करते हैं, तो आपको ज्ञान प्राप्त होने की संभावना है।

अपनी सभी बाधाओं को नष्ट करें

भगवान गणेश को विघ्नहर्ता के नाम से जाना जाता है। इसलिए, जब आप पूरे विश्वास के साथ भगवान गणेश की पूजा करते हैं, तो वे आपको सही रास्ते पर ले जाते हैं। भगवान गणेश आपको अपने डर पर विजय पाने और अपने जीवन में सभी बाधाओं को दूर करने का साहस देते हैं।

आप धैर्यवान बनेंगे

यह भगवान गणेश के बड़े कान हैं जो एक धैर्यवान श्रोता का प्रतीक हैं। यदि आप भगवान की पूजा करते हैं और अपनी आंतरिक शक्ति पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो आप समान स्तर का धैर्य विकसित करेंगे।

आप ज्ञानी बन सकेंगे

जब आप भगवान गणेश की पूजा करते हैं तो आप परिवर्तन के मार्ग पर चलने लगते हैं। और दृढ़ निश्चय से आप ज्ञान की सीढ़ियाँ चढ़ेंगे।

आपकी आत्मा शुद्ध हो जाएगी

ऐसा माना जाता है कि जो कोई भी अत्यधिक समर्पण के साथ उनकी पूजा करता है, उसकी आत्मा शुद्ध होती है। आप धीरे-धीरे अपने जीवन से नकारात्मकता को दूर करने लगेंगे, जिससे आपकी आत्मा और भी शुद्ध होगी।

आपका जीवन शांतिपूर्ण रहेगा

जब आप भगवान गणेश की पूजा करते हैं, तो आपको अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जिम्मेदारी का अहसास होने लगता है और आपका जीवन व्यक्तिगत और पेशेवर दोनों तरह से शांतिपूर्ण हो जाता है।

Ganesh Chaturthi Vrat Katha In Hindi (गणेश चतुर्थी व्रत कथा) 1

एक बार भगवान शंकर और माता पार्वती नर्मदा नदी के निकट बैठे थे। वहां देवी पार्वती ने भगवान भोलेनाथ से समय व्यतीत करने के लिये चौपड खेलने को कहा। भगवान शंकर चौपड खेलने के लिये तो तैयार हो गये। परन्तु इस खेल मे हार-जीत का फैसला कौन करेगा?

इसका प्रश्न उठा, इसके जवाब में भगवान भोलेनाथ ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका पुतला बनाया, उस पुतले की प्राण प्रतिष्ठा कर दी और पुतले से कहा कि बेटा हम चौपड खेलना चाहते है। परन्तु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है। इसलिये तुम बताना की हम में से कौन हारा और कौन जीता।

यह कहने के बाद चौपड का खेल शुरु हो गया। खेल तीन बार खेला गया और संयोग से तीनों बार पार्वती जी जीत गईं। खेल के समाप्त होने पर बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिये कहा गया, तो बालक ने महादेव को विजयी बताया। यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गई। और उन्होंने क्रोध में आकर बालक को लंगडा होने व किचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया। बालक ने माता से माफी मांगी और कहा की मुझसे अज्ञानता वश ऐसा हुआ, मैनें किसी द्वेष में ऐसा नहीं किया। बालक के क्षमा मांगने पर माता ने कहा की, यहां गणेश पूजन के लिये नाग कन्याएं आएंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऐसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे, यह कहकर माता, भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गई।

एक वर्ष बाद उस स्थान पर नाग कन्याएं आईं। नाग कन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि मालुम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेश जी का व्रत किया। उसकी श्रद्धा देखकर गणेश जी प्रसन्न हो गए। और श्री गणेश ने बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिये कहा। बालक ने कहा कि, हे विनायक मुझमें इतनी शक्ति दीजिए, कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वो यह देख प्रसन्न हों।

बालक को यह वरदान दे, श्री गणेश अन्तर्धान हो गए। बालक इसके बाद कैलाश पर्वत पर पहुंच गया। और अपने कैलाश पर्वत पर पहुंचने की कथा उसने भगवान महादेव को सुनाई। उस दिन से पार्वती जी शिवजी से विमुख हो गईं। देवी के रुष्ठ होने पर भगवान शंकर ने भी बालक के बताये अनुसार श्री गणेश का व्रत 21 दिनों तक किया। इसके प्रभाव से माता के मन से भगवान भोलेनाथ के लिये जो नाराजगी थी वो स्वयं समाप्त हो गई।

पार्वती जी के मन में स्वयं महादेवजी से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई। वे शीघ्र ही कैलाश पर्वत पर आ पहुँची। वहाँ पहुँचकर पार्वतीजी ने शिवजी से पूछा- भगवन! आपने ऐसा कौन-सा उपाय किया जिसके फलस्वरूप मैं आपके पास भागी-भागी आ गई हूँ। शिवजी ने ‘गणेश व्रत’ का इतिहास उनसे कह दिया।

यह व्रत विधि भगवन शंकर ने माता पार्वती को बताई। यह सुन माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई। माता ने भी 21 दिन तक श्री गणेश व्रत किया और दुर्वा, पुष्प और लड्डूओं से श्री गणेश जी का पूजन किया। व्रत के 21 वें दिन कार्तिकेय स्वयं पार्वती जी से आ मिलें। कार्तिकेय ने यही व्रत विश्वामित्रजी को बताया। विश्वामित्रजी ने व्रत करके गणेशजी से जन्म से मुक्त होकर ‘ब्रह्म-ऋषि’ होने का वर माँगा। गणेशजी ने उनकी मनोकामना पूर्ण की। इस प्रकार श्री गणेशजी चतुर्थी व्रत को मनोकामना व्रत भी कहा जाता है। इस व्रत को करने से वो सबकी मनोकामना पूरी करते है।

इस तरह पूजन करने से भगवान श्रीगणेश अति प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की हर मुराद पूरी करते हैं।

Ganesh Chaturthi Vrat Katha In Hindi (गणेश चतुर्थी व्रत कथा) 2

एक समय भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के विवाह की तैयारियां चल रही थीं, इसमें सभी देवताओं को निमंत्रित किया गया लेकिन विघ्नहर्ता गणेश जी को निमंत्रण नहीं भेजा गया। सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ विवाह में आए लेकिन गणेश जी उपस्थित नहीं थे, ऐसा देखकर देवताओं ने भगवान विष्णु से इसका कारण पूछा।

उन्होंने कहा कि भगवान शिव और पार्वती को निमंत्रण भेजा है, गणेश अपने माता-पिता के साथ आना चाहें तो आ सकते हैं। हालांकि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर में चाहिए। यदि वे नहीं आएं तो अच्छा है। दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना-पीना अच्छा भी नहीं लगता।

इस दौरान किसी देवता ने कहा कि गणेश जी अगर आएं तो उनको घर के देखरेख की जिम्मेदारी दी जा सकती है। उनसे कहा जा सकता है कि आप चूहे पर धीरे-धीरे जाएंगे तो बाराज आगे चली जाएगी और आप पीछे रह जाएंगे, ऐसे में आप घर की देखरेख करें। योजना के अनुसार, विष्णु जी के निमंत्रण पर गणेश जी वहां उपस्थित हो गए।

उनको घर के देखरेख की जिम्मेदारी दे दी गई। बारात घर से निकल गई और गणेश जी दरवाजे पर ही बैठे थे, यह देखकर नारद जी ने इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि विष्णु भगवान ने उनका अपमान किया है। तब नारद जी ने गणेश जी को एक सुझाव दिया।

गणपति ने सुझाव के तहत अपने चूहों की सेना बारात के आगे भेज दी, जिसने पूरे रास्ते खोद दिए। इसके फलस्वरूप देवताओं के रथों के पहिए रास्तों में ही फंस गए। बारात आगे नहीं जा पा रही थी। किसी के समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए, तब नारद जी ने गणेश जी को ​बुलाने का उपाय दिया ताकि देवताओं के विघ्न दूर हो जाएं। भगवान शिव के आदेश पर नंदी गजानन को लेकर आए। देवताओं ने गणेश जी का पूजन किया, तब जाकर रथ के पहिए गड्ढों से निकल तो गए लेकिन कई पहिए टूट गए थे।

उस समय पास में ही एक लोहार काम कर रहा था, उसे बुलाया गया। उसने अपना काम शुरू करने से पहले गणेश जी का मन ही मन स्मरण किया और देखते ही देखते सभी रथों के पहियों को ठीक कर दिया। उसने देवताओं से कहा कि लगता है आप सभी ने शुभ कार्य प्रारंभ करने से पहले विघ्नहर्ता गणेश जी की पूजा नहीं की है, तभी ऐसा संकट आया है।

आप सब गणेश जी का ध्यान कर आगे जाएं, आपके सारे काम हो जाएंगे। देवताओं ने गणेश जी की जय जयकार की और बारात अपने गंतव्य तक सकुशल पहुंच गई। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का विवाह संपन्न हो गया।

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