Ekadashi Vrat Katha (एकादशी व्रत कथा) In Hindi
हिंदू शास्त्रों के अनुसार, एकादशी शब्द दो शब्दों से बना है जो एक (1) और दशम (10) हैं। दस इन्द्रियों और मन की क्रियाओं को सांसारिक वस्तुओं से ईश्वर में बदलना ही सच्ची एकादशी है।
एकादशी का मतलब है कि हमें अपनी 10 इंद्रियों और 1 मन को नियंत्रित करना चाहिए। काम, क्रोध, लोभ आदि के दुष्परिणामों को मन में नहीं आने देना चाहिए।
एकादशी एक तपस्या है जिसे केवल भगवान श्री विष्णु जी की पूजा करने और उन्हें प्रसन्न करने के लिए किया जाना चाहिए।
यदि हम इंद्रियों और मन को भौतिकवादी दुनिया से अलग कर दें, तो आध्यात्मिक शक्ति उत्पन्न होती है। जितना अधिक हम इन्द्रिय-विषयों का भोग करते हैं, हम उतने ही अधिक मूर्ख, दुष्ट और शक्तिहीन होते जाते हैं।
वशिष्ठ तथा विश्वामित्र जैसे महान ऋषि-मुनि सभी गृहस्थ थे, फिर भी वे स्वयं पर पूर्ण नियंत्रण रखते थे। उन्होंने सभी इंद्रियों और मन को ईश्वर की ओर निर्देशित किया।
उन्होंने गृहस्थ आश्रम में रहकर इन्द्रियों और मन को वश में किया। जब उन्होंने अपनी इंद्रियों और मन को नियंत्रित किया, तो उनके अंदर शक्ति पैदा हुई जिसने बदले में उन्हें भगवान के प्रति मज़बूत बना दिया।
मुर्दानव को मारने के लिए भगवन श्री विष्णु जी ने माता एकादशी को उत्पन्न किआ था। इस लेख में हम Ekadashi Vrat और Ekadashi Vrat Katha (एकादशी व्रत कथा) के बारे में जानेंगे।

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एकादशी तथा एकादशी व्रत क्या है? (What is Ekadashi and Ekadashi Vrat?)
हिंदू पंचांग के हर एक माह की ग्यारहवीं तिथि को एकादशी कहा जाता है। आपको बता दें कि हिन्दू पंचांग के प्रत्येक माह में दो पक्ष होते हैं जिन्हें शुक्ल तथा कृष्ण पक्ष कहा जाता है।
प्रत्येक पक्ष लगभग 15 दिनों का होता है। इसलिए प्रत्येक पक्ष में एक बार एकादशी तिथि आती है और एक माह में दो एकादशी तिथियां होती हैं जो कि एक शुक्ल पक्ष तथा दूसरी कृष्ण पक्ष में होती है।
एक एकादशी पूर्णिमा के बाद और एक अमावस्या के बाद आती है। पूर्णिमा के दिन के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी कहा जाता है तथा अमावस्या के दिन के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहा जाता है।
इन दोनों प्रकार की एकादशियों का हिन्दू धर्म में बहुत बड़ा महत्त्व है। एकादशी का दिन भगवन श्री विष्णु जी तथा उनके विभिन्न अवतारों के लिए समर्पित है।
एकादशी के दिन हिन्दू धर्म में मानने वाले कई लोग व्रत का पालन करते हैं तथा व्रत कथाओं का पाठ करते हैं। प्रत्येक एकादशी के दिन के लिए व्रत कथा का वर्णन है।
प्राचीन काल में भगवन श्री कृष्ण जी ने एकादशियों का माहात्म्य पांडवों को बतलाया था।
एकादशी व्रत और एकादशी व्रत कथा कब करनी चाहिए? (When to do Ekadashi Vrat and Ekadashi Vrat Katha?)
Ekadashi Vrat और Ekadashi Vrat Katha (एकादशी व्रत कथा) आध्यात्मिक सफाई के बारे में है। यह भगवान विष्णु को समर्पित है।
हिंदू मान्यता के अनुसार चंद्र चरण के दो अलग-अलग चरण होते हैं – कृष्ण पक्ष (अमावस्या) और शुक्ल पक्ष (पूर्णिमा)। प्रत्येक चरण 15 दिनों का होता है।
ग्यारहवें दिन को एकादशी कहा जाता है। इस दिन रखे जाने वाले व्रत या कर्मकांड को एकादशी व्रत कहा जाता है और दुनिया भर में लाखों हिंदुओं द्वारा मनाया जाता है।
एकादशी का व्रत एक दिन पहले सूर्यास्त से शुरू होकर एकादशी के अगले दिन सूर्योदय के बाद तक रखा जाता है।
निचे दी गयी सूचि में हमने प्रत्येक एकादशी व्रत, एकादशी व्रत कथा तथा एकादशी व्रत विधि के बारे में विस्तार से लेख लिखे हैं। आप लिंक पर क्लिक कर के वे लेख पढ़ सकते हैं।
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